Showing posts with label महसूस. Show all posts
Showing posts with label महसूस. Show all posts

Saturday, 19 November 2022

जब-जब ढूंढ़ोगे


विश्रांतियों में, महसूस करोगे!
जब-जब ढूंढ़ोगे!

यूं तो, दो पल चैन कहां, लेने देगी,
यह जीवन, जां ही लेगी,
वन-वन, ये पतझड़ ही, ले जाएगी,
मरुवन सा, जीवन,
बिखरे पलों के रेत शिखर,
लख कर,
अंन्तःवन की,
विश्रांतियों में, महसूस करोगे!
जब-जब ढूंढ़ोगे!

ठहरा सा, गुजरा इक, वक्त भले हूं,
पर लम्हा, इक, जीवंत हूं,
पीछे मुड़कर देखो, तो राह अनंत हूं,
थकाएंगी, ये लम्हा,
पर, सहलाएंगी, वो लम्हा,
हर पग,
थक-थक कर,
विश्रांतियों में, महसूस करोगे!
जब-जब ढूंढ़ोगे!

यूं ना डूबो, उन अनंत रिक्तियों में,
झांको, उन विस्मृतियों में,
ले जाओ, खुद को उन्हीं स्मृतियों में,
वहीं, ठहरा हो कोई,
दो पलकें, यूं ही हों खोई,
जागी सी,
छू जाए शायद!
विश्रांतियों में, महसूस करोगे!
जब-जब ढूंढ़ोगे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday, 3 August 2018

लिखता हूं अनुभव

निरंतर शब्दों मे पिरोता हूं अपने अनुभव....

मैं लिखता हूं, क्यूंकि महसूस करता हूं,
जागी है अब तक आत्मा मेरी,
भाव-विहीन नहीं, भाव-विह्वल हूं,
कठोर नहीं, हृदय कोमल हूं,
आ चुभते हैं जब, तीर संवेदनाओं के,
लहू बह जाते हैं शब्दों में ढ़लके,
लिख लेता हूं, यूं संजोता हूं अनुभव...

निरंतर शब्दों मे पिरोता हूं अपने अनुभव....

मैं लिखता हूं, जब विह्वल हो उठता हूं,
जागृत है अब तक इन्द्रियाँ मेरी,
सुनता हूं, अभिव्यक्त कर सकता हूं,
संजीदा हूं, संज्ञा शून्य नहीं मैं,
झकझोरती हैं, मुझे सुबह की किरणें,
ले आती हैं, सांझ कुछ सदाएं,
सुन लेता हूं, यूं बुन लेता हूं अनुभव...

निरंतर शब्दों मे पिरोता हूं अपने अनुभव....

Saturday, 25 March 2017

आभास

परछाई हूँ मैं, बस आभास मुझे कर पाओगे तुम .....

कर सर्वस्व निछावर,
दिया था मैने स्पर्शालिंगन तुझको,
इक बुझी चिंगारी हूँ अब मैं,
चाहत की गर्मी कभी न ले पाओगे तुम।

अब चाहो भी तो,
आलिंगनबद्ध नही कर पाओगे तुम,
इक खुश्बू हूँ बस अब मैं,
कभी स्पर्श मुझे ना कर पाओगे तुम।

चाहत हूँ अब भी तेरा,
नर्म यादें बन बिखरूँगा मैं तुममें ही,
अमिट ख्याल हूँ बस अब मैं,
कभी मन से ना निकाल पाओगे तुम।

तेरी साँसों में ढलकर,
बस छूकर तुम्हें निकल जाऊँगा मैं,
झौंका पवन का हूँ इक अब मैं,
सदा अपनी आँचल से बंधा पाओगे तुम।

साया हूँ तेरा, बस महसूस मुझे कर पाओगे तुम....

Monday, 18 April 2016

अब कोई इन्तजार नहीं

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

बँधी थी उम्मीद की हल्की सी इक डोर,
कुछ छाँव सी महसूस होती थी गहराती धूप में भी,
मंद-मंद बयार चल जाती थी यादों की हर पल,
कानों मे अब गुंजता है सन्नाटा चीरता इक शोर....,

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

हजार सपनों संग बंधी थी जीवन की डोर,
तन्हाई मादक सी लगती थी उन यादों की महफिल में,
धड़क जाता था दिल इक हल्की सी आहट में,
जेहन में अब घूमता है विराना सा अंतहीन छोर.....

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

सँवरता था कभी वक्त, मदभरी बातों के संग,
सिलसिले थे शामों के तब, उन खिलखिलाहटों के संग,
मिश्री सी तरंग तैरती थी गुमशुदा हवाओं में तब,
कहीं गुमशुम वो आवाज, क्युँ है अब खामोश दौर....

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

Friday, 8 April 2016

खनकती हँसी

वो खनकती हँसी बहुत दिनों बाद सुन सका था मैं....!

इक हँसी जिसमें रहती थी खनखनाहट,
वो सिर्फ हँसी नहीं एहसास की खनक सी थी वो,
कई दिनों से कहीं गुम और चुप सी थी वो,
दबी हुई थी वो खनक न जाने किन दिशाओं में,
आज मुस्कुराहटों के साथ उभरी है फिर उन लबों पे।

महसूस हुई वो खनकती हँसी कुछ दबी हुई सी लबों पे!

एहसासों के मंजर कुछ बिखरे से थे हँसी में,
शायद झुलस रही थी कहीं वो समय की जलन में,
खुल के जी न पाई थी वो चुप सी लम्हों में,
दबी सी दर्द जगी थी कहीं उस हँसी की खनक में,
अब वही खनखनाहट फिर दिख रही उन धड़कनों में।

वो खनकती हँसी बहुत दिनों बाद सुन सका था मैं....!