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Tuesday, 2 August 2022

आहट


घुल रही है, यूं फिजा में आहट किसी की ....

हर तरफ, एक धुंधली सी नमीं,
भीगी-भीगी, सी ज़मीं,
हैं नभ पर बिखेरे, किसी ने आंचल,
और बज उठे हैं, गीत छलछल,
हर तरफ इक रागिनी!

घुल रही है, यूं फिजा में आहट किसी की ....

पल-पल, धड़कता है, वो घन,
कांप उठता, है ये मन,
झपक जाती हैं, पलकें यूं चौंक कर,
ज्यूं, खड़ा कोई, राहें रोककर,
अजब सी, दीवानगी!

घुल रही है, यूं फिजा में आहट किसी की ....

हो न हो, ये सरगम, है उसी की,
है मद्धम, राग जिसकी,
सुरों में, सुरीली है आवाज जिसकी,
छेड़ जाते हैं, जो सितार मन के,
कर दूं कैसे अनसुनी?

घुल रही है, यूं फिजा में आहट किसी की ....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday, 21 November 2017

वही धुन

धुन सरगम की वही, चुन लाना फिर से तू यारा......

वो पहला कदम, वो छम छम छम,
इस दहलीज पर, रखे थे जब तूने कदम,
इक संगीत थी गूंजी, गूंजा था आंगन,
छम छम नृत्य कर उठा था ये मृत सा मन,
वही प्रीत, वही स्पंदन, दे देना मुझको सारा...

धुन सरगम की वही, चुन लाना फिर से तू यारा......

वो चौखट मेरी, जो थी अधूरी सूनी,
अब गाते है ये गीत, करते है मेरी अनसुनी,
घर के कण-कण, बजते हैं छम छम,
फिर कोई गीत नई, सुना दे ऐ मेरे हमदम,
गीतों का ये शहर, मुझको प्राणों से है प्यारा...

धुन सरगम की वही, चुन लाना फिर से तू यारा......

वो स्नेहिल स्पर्श, वो छुअन के संगीत,
वो नैनों की भाषा में गूंजते अबोले से गीत,
धड़कन के धक-धक की वो थपकी,
साँसों के उच्छवास संग सुर का बदलाव,
वही प्रारब्ध, वही ठहराव, वही अंत है सारा...

धुन सरगम की वही, चुन लाना फिर से तू यारा......

स्तब्ध हूँ, उस धुन से आलिंगनबद्ध हूँ,
नि:शब्द हूँ, अबोले उन गीतों से आबद्ध हूँ,
स्निग्ध हूँ, उन सप्तसुरों में ही मुग्ध हूँ,
विमुक्त हूँ, निर्जन मन के सूनेपन से मुक्त हूँ,
कटिबद्ध हूँ, उस धुन पर मैने ये जीवन है वारा.....

धुन सरगम की वही, चुन लाना फिर से तू यारा......