Showing posts with label सुरबाला. Show all posts
Showing posts with label सुरबाला. Show all posts

Thursday, 14 July 2016

वेदना

क्युँ झंकृत है फिर आज तन्हाई का ये पल,
कौन पुकारता है फिर मुझको विरह के द्वार,

वो है कौन जिसके हृदय मची है हलचल,
है किस हृदय की यह करुणा भरी पुकार,

फव्वारे छूटे हैं आँसूओं के नैनों से पलपल,
है किस वृजवाला की असुँवन की यह धार,

फूट रहा है वेदना का ज्वार विरह में हरपल,
है किस विरहन की वेदना का यह चित्कार,

टूटी है माला श्रद्धा की मन हो रहा विकल,
है किस सुरबाला की टूटी फूलों का यह हार,

पसीजा है पत्थर का हृदय भी इस तपिश में,
जागा है शिला भी सुनकर वो करूण पुकार।