क्युँ झंकृत है फिर आज तन्हाई का ये पल,
कौन पुकारता है फिर मुझको विरह के द्वार,
वो है कौन जिसके हृदय मची है हलचल,
है किस हृदय की यह करुणा भरी पुकार,
फव्वारे छूटे हैं आँसूओं के नैनों से पलपल,
है किस वृजवाला की असुँवन की यह धार,
फूट रहा है वेदना का ज्वार विरह में हरपल,
है किस विरहन की वेदना का यह चित्कार,
टूटी है माला श्रद्धा की मन हो रहा विकल,
है किस सुरबाला की टूटी फूलों का यह हार,
पसीजा है पत्थर का हृदय भी इस तपिश में,
जागा है शिला भी सुनकर वो करूण पुकार।
कौन पुकारता है फिर मुझको विरह के द्वार,
वो है कौन जिसके हृदय मची है हलचल,
है किस हृदय की यह करुणा भरी पुकार,
फव्वारे छूटे हैं आँसूओं के नैनों से पलपल,
है किस वृजवाला की असुँवन की यह धार,
फूट रहा है वेदना का ज्वार विरह में हरपल,
है किस विरहन की वेदना का यह चित्कार,
टूटी है माला श्रद्धा की मन हो रहा विकल,
है किस सुरबाला की टूटी फूलों का यह हार,
पसीजा है पत्थर का हृदय भी इस तपिश में,
जागा है शिला भी सुनकर वो करूण पुकार।