क्युँ झंकृत है फिर आज तन्हाई का ये पल,
कौन पुकारता है फिर मुझको विरह के द्वार,
वो है कौन जिसके हृदय मची है हलचल,
है किस हृदय की यह करुणा भरी पुकार,
फव्वारे छूटे हैं आँसूओं के नैनों से पलपल,
है किस वृजवाला की असुँवन की यह धार,
फूट रहा है वेदना का ज्वार विरह में हरपल,
है किस विरहन की वेदना का यह चित्कार,
टूटी है माला श्रद्धा की मन हो रहा विकल,
है किस सुरबाला की टूटी फूलों का यह हार,
पसीजा है पत्थर का हृदय भी इस तपिश में,
जागा है शिला भी सुनकर वो करूण पुकार।
कौन पुकारता है फिर मुझको विरह के द्वार,
वो है कौन जिसके हृदय मची है हलचल,
है किस हृदय की यह करुणा भरी पुकार,
फव्वारे छूटे हैं आँसूओं के नैनों से पलपल,
है किस वृजवाला की असुँवन की यह धार,
फूट रहा है वेदना का ज्वार विरह में हरपल,
है किस विरहन की वेदना का यह चित्कार,
टूटी है माला श्रद्धा की मन हो रहा विकल,
है किस सुरबाला की टूटी फूलों का यह हार,
पसीजा है पत्थर का हृदय भी इस तपिश में,
जागा है शिला भी सुनकर वो करूण पुकार।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आज की प्रस्तुति में मेरी विविध रचनाओं को एक जगह शामिल कर आपने मुझे विस्मित कर दिया है आदरणीया श्वेता जी। मेरे शौकिया लेखन को विशिष्टता प्रदान करने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ।
Deleteअद्भुत अप्रतिम हृदय को आडोलित करती प्रस्तुति।
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीय कुसुम जी।
Deleteखूब कलम चली..
ReplyDeleteबहुत सुंंदर।
हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीया ।
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