Showing posts with label स्वप्न. Show all posts
Showing posts with label स्वप्न. Show all posts

Wednesday 10 February 2016

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम,

मैं रहता हूँ हृदय में तेरे मांग तेरी सजाता हूँ,
तुम देखती हो सपने, सिर्फ मेरे ही सपने,
जुल्फों की बिखरी लटें तेरी मैं ही सहलाता हूँ,
रोज ही गूंधता हूँ एक फूल लटों में तेरे ।

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम,

तुम्हारी आँखों में सजाता हूँ जीवन की तस्वीरें,
गगन की छाँव से काजल ले आता हूँ,
इन्तजार में देहरी पर बैठी हो तुम मेरे ही,
तेरी आँखों में बस एक मैं ही रहता हूँ।

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम,

देखता हूँ बीतती उमर अपनी सामने तेरे,
तुम साधना में बैठी हो संग मेरे ही,
उदय होते है दिन मेरे नयनों के निलय में तेरे,
मुग्ध होता हूँ झुर्रियाँ देख चेहरे पे तेरे।

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम।

Wednesday 27 January 2016

स्वप्न स्मृति

स्वप्नों की क्षणिक आभा,
विस्मृत होती मानस पटल पे,
अंकित कर जाते कितने ही,
स्मृतियों की धुँधली रेखायें इनमें।

स्वर लहर मधुर स्वप्नों की,
नित अटखेलियाँ करती तट निद्रा पर,
सुसुप्त मन हिलकोर जाती,
खीच जाती स्मृतियों की रेखायें इनमे।

ओ स्वप्न वीणा के संगीत,
नित छेड़ते क्युँ तुम निद्रा के तार,
छेड़ते धुन मधु स्मृतियों की,
बनती स्मृति की कई श्रृंखलाएं इनमें।

प्रभात कोहरे में मिट जाती,
स्वप्न छाया का विस्मृत कारागार,
रह जाती क्षणिक स्मृति शेष सी,
विस्तृत स्मृतियों की लघु रेखाएँ इनमे।

Wednesday 13 January 2016

अधूरा स्वप्न

बिखरे थे राहों में कुछ फूलों जैसे शय,
दुर्दशा देख द्रवित हो रूंध उठा हृदय,
हुई विह्वल आँखें मन को बांधु तो कैसे,
भाव प्रवण दामन मे समेट लिया ऐसे।

बसा लिया उस फूल को फिर हमने,
हृदय के अन्दर सुदूर कोने में कहीं,
महसूस हुआ स्पर्श उन फूलों सा ही,
व्यथा उसके मन की है अब मेरी ही।

भ्रम टूटा जब चुभन काँटो की हुई,
उसकी भी अपनी कोई आपबीती,
भूत के गर्त से निकल समक्ष आई,
सपन मृदु टूटे आँखे विह्वल हो आईं।

मृदुलता के कुछ क्षण साथ हमने थे बाँटे,
चुपके से दामन मे चुभ गए थे कुछ काँटे,
संशय भ्रम उन स्वप्नों के पर अब हैं छूटे,
क्या हुआ जब दिल किसी बात पर टूटे।