Wednesday, 27 January 2016

स्वप्न स्मृति

स्वप्नों की क्षणिक आभा,
विस्मृत होती मानस पटल पे,
अंकित कर जाते कितने ही,
स्मृतियों की धुँधली रेखायें इनमें।

स्वर लहर मधुर स्वप्नों की,
नित अटखेलियाँ करती तट निद्रा पर,
सुसुप्त मन हिलकोर जाती,
खीच जाती स्मृतियों की रेखायें इनमे।

ओ स्वप्न वीणा के संगीत,
नित छेड़ते क्युँ तुम निद्रा के तार,
छेड़ते धुन मधु स्मृतियों की,
बनती स्मृति की कई श्रृंखलाएं इनमें।

प्रभात कोहरे में मिट जाती,
स्वप्न छाया का विस्मृत कारागार,
रह जाती क्षणिक स्मृति शेष सी,
विस्तृत स्मृतियों की लघु रेखाएँ इनमे।

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