Wednesday, 1 June 2016

राख

दिल की हदों से गुजरी थी कभी जिन्दगी,
किस्से मोहब्बत के तमाम बाकी हैं,

चाहत के फूलों से सजा था कभी गुलशन,
जिन्दगी के अब कुछ निशान बाकी हैं,

उजड़ी है बस्तियाँ खत्म हो चुकी हैं कहानी,
चाहत के बस कुछ अल्फाज बाकी है,

मजार-ए-मीनार बनी इक अधूरे ईश्क की,
चाहत की मुकम्मल सी याद बाकी है,

अब अक्श है वो सामने जैसे लपटें हो आग की,
जलते हुए ईश्क की बस राख बाकी है।

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