Thursday, 2 June 2016

चाहत की जिन्दगी

मुस्कुराहटों में गीत सी बजती है जिन्दगी,
उन नर्म होठों पे खिल के जब बिखरती है वो हँसी,
खिलखिलाहट में है उनकी नग्मों की रवानगी,
उन सुरमई आँखों में खुद ही कहीं तैरती है जिन्दगी।

दूरियों के एहसास अब दिलाती है जिन्दगी,
जेहन में अब तो बार-बार फिर उभरती है वो हँसी,
सजदा किए थे हमने जिन किनारों के कहीं,
कगार-ए-एहसास फिर वही अब मांगती है जिन्दगी।

बेकरारियों के दिए फिर जलाती है जिन्दगी,
कानों में इक आवाज सी बन के गूँजती है वो हँसी,
साज धड़कनों के मचल बज उठे फिर कहीं,
चाहतों का इक रंगीन सफर फिर चाहती है जिन्दगी।

No comments:

Post a Comment