Monday, 25 July 2016

कोरे जज्बात

माने ना ये मेरी बात, ये कैसे हैं......कोरे जज्बात?

कोरा.....ये मेरा मन....., पर ये जज्बात हैं कैसे,
अनछुए..... से मेरे धड़कन..,,, पर ये एहसास हैं कैसे,
अनजाना.... सा यौवन...., पर ये तिलिस्मात हैं कैसे,
मन खींचता जाता किस ओर, ये अंजान है कैसे?

यौवन की.....,, इस अंजानी दहलीज पर,
उठते है जज्बातों के.........ये ज्वार.... किधर से,
कौन जगाता है .....एहसासों को चुपके से,
बेवश कर जाता मन को कौन, ये अंजान है कैसे?

खुली आँख... सपनों की ...होती है फिर बातें,
बंद आँखों में ....न जाने उभरती वो तस्वीर कहाँ से,
लबों पर इक प्यास सी...जगती है फिर धीरे से,
गहराती फिर मन में वो प्यास, मन अंजान हो कैसे?

फिर उस अंजानी बुत.....की ही होती बस बातें,
कहीं तारों के उपर...बस जाती मन की छोटी दुनियाँ,
साँसों में घुलती....खुश्बू फिर इक अंजानी सी,
गा उठते हैं जज्बात नए तराने, गीत अंजान ये कैसे?

संभाले ...अब कौन इसे, रोके ...कौन इसे कैसे,
बहके से हैं....ये जज्बात, एहसासों...की है ये बारात,
कोरा सा ये मन...रिमझिम सी उसपर ये बरसात,
सुलगी है आग मचले हैं ये जज्बात, माने ये फिर कैसे?

माने ना ये मेरी बात, ये कैसे हैं.......कोरे जज्बात?

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