Sunday, 31 July 2016

बर्फ सी जिन्दगी

बर्फ सा बदन, पिघल रहा हर पल तह पर पत्थरों की....

जिन्दगी ये बर्फ के फाहा सी,
तन चाँदी सम, प्रखर तेज आभा इसकी,
फूलों सा स्पर्श, कोमल काया इसकी,
नग्न धूप में खिलती, सुनहरी आभा इसकी,
पिघल रही पत्थरों पर, विधि की विधान यह कैसी?

बर्फ सा बदन, पिघल रहा हर पल तह पर पत्थरों की....

पल पल पिघलती यह जिन्दगी,
सख्त पत्थरों के तन को पल पल सहलाती,
उष्मा सोखती तप्त-गर्म पत्थरों की,
ठंढ़ी काया अपनी पत्थर पर पिघलाती,
सजल हुई पत्थरों पर, विधि की विधान यह कैसी?

बर्फ सा बदन, पिघल रहा हर पल तह पर पत्थरों की....

सागर बना तब वो, जब ये बर्फ गली,
कंटक भरी राहों चला वो, तब ये नदी बनी,
उमंगें, आशाएँ, लहरें इसके तट खिली,
कलियाँ जीवन की खिली, ऊँचाई से जब यह फिसली,
आँचल खुली पत्थरों पर, विधि की विधान यह कैसी?

बर्फ सा बदन, पिघल रहा हर पल तह पर पत्थरों की....

तू कायम रह सदा कहती जिन्दगी,
सर ऊँचा, मन शान्त, हृदय में तू रख बंदगी,
तेरी राहें तुझे नई ऊँचाई दे जीवन की,
मैं तो जीवन हूँ, तेरे ही तन रही सदा फिसलती,
निर्जल हुई पत्थरों पर, विधि की विधान यह कैसी?

बर्फ सा बदन, पिघल रहा हर पल तह पर पत्थरों की....

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