काश! उनसे कुछ कह भी देते ये मेरे मौन से अधर!
बस अपलक देखता ही रह गया था ये नजर,
मन कहीं दूर बह चला था पराया सा होकर,
काँपते से ये अधर बस रह गए यूँ हीं थिरक कर,
अधरों से फूट सके ना, कँपकपाते से ये स्वर!
काश! मौन अधरों की मेरी ये भाषा तुम पढ लेते!
काश! मेरी अभिलाषा व्यक्त करते मेरे मौन से अधर!
फूट पड़े थे मन में प्रेम के मेरे बेस्वर से गीत,
हृदय की धुन संग मन गा रहा था प्रेम का गीत,
पर वाणी विहीन होकर रह गई मेरी वो संगीत,
दे ना सका कोई उपहार तुमको ऐ मेरे मनमीत,
काश! स्वर जो फूट सके ना अधरों से तुम सुन लेते!
काश! कुछ क्षण ही उनको रोक लेते मेरे मौन से अधर!
वो क्षण बस यूँ ही रह गया था मन तड़प कर,
दूर तक जाते हुए जब, तुमने देखा भी न था मुड़कर,
पर हृदय की ये डोर कहीं ले गए थे तुम खींचकर,
अव्यक्त मन की अभिलाषा रह गई कहीं खोकर,
काश! मन की कोरी अभिलाषा को तुम ही स्वर देते!
काश! उन नैनों मे नीर देख न तड़पते मेरे मौन से अधर!
है कैसी ये विडंबना, न्याय ये कैसा तेरा हे ईश्वर,
क्षणभर ही उसको भी मिल पाया था जीवन का स्वर,
अब विरहा में कहीं कलपते है उसके भी अधर,
बस अपलक देखता ही रह गया था ये नजर,
मन कहीं दूर बह चला था पराया सा होकर,
काँपते से ये अधर बस रह गए यूँ हीं थिरक कर,
अधरों से फूट सके ना, कँपकपाते से ये स्वर!
काश! मौन अधरों की मेरी ये भाषा तुम पढ लेते!
काश! मेरी अभिलाषा व्यक्त करते मेरे मौन से अधर!
फूट पड़े थे मन में प्रेम के मेरे बेस्वर से गीत,
हृदय की धुन संग मन गा रहा था प्रेम का गीत,
पर वाणी विहीन होकर रह गई मेरी वो संगीत,
दे ना सका कोई उपहार तुमको ऐ मेरे मनमीत,
काश! स्वर जो फूट सके ना अधरों से तुम सुन लेते!
काश! कुछ क्षण ही उनको रोक लेते मेरे मौन से अधर!
वो क्षण बस यूँ ही रह गया था मन तड़प कर,
दूर तक जाते हुए जब, तुमने देखा भी न था मुड़कर,
पर हृदय की ये डोर कहीं ले गए थे तुम खींचकर,
अव्यक्त मन की अभिलाषा रह गई कहीं खोकर,
काश! मन की कोरी अभिलाषा को तुम ही स्वर देते!
काश! उन नैनों मे नीर देख न तड़पते मेरे मौन से अधर!
है कैसी ये विडंबना, न्याय ये कैसा तेरा हे ईश्वर,
क्षणभर ही उसको भी मिल पाया था जीवन का स्वर,
अब विरहा में कहीं कलपते है उसके भी अधर,
अवसाद भरे हृदय में उठता है पल पल कैसा ये ज्वर,
काश! बूँदें अँसुवन की उन नैनों में ना छलके होते?
काश! अब तो उनसे कुछ कह पाते ये मेरे मौन से अधर!
काश! अब तो उनसे कुछ कह पाते ये मेरे मौन से अधर!
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