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Saturday, 25 May 2019

अधूरे ख्वाब

सत्य था, या झूठ था, तलाश बस वो एक था,
द्वन्द के धार मे, नाव बस एक था,
वही प्रवाह है, वही दोआब है....

संदली राह, मखमली चाह, मदभरी निगाह है,
अनबुझ सी, वही इक प्यास है,
अधूरा सा है, वही ख्वाब है...

बुन लाता ख्वाब सारे, चुन लाता मैं वही तारे,
बस, स्याह रातों सा हिजाब है,
बवंडर सा है, इक सैलाब है...

यूँ ही रहे गर्दिशों में, बेरहम वक्त के रंजिशो में,
उभरते से रहे, वो ही तस्वीरों में,
एक अक्श है, वही निगाह है....

जल जाते हैं वो, जुगनुओं सा चिराग बनकर,
उभर आते हैं, कोई याद बन कर,
एक जख्म है, वही रिसाव है...

वक्त के इस मझधार में, पतवार बस एक था,
उफनती धार में, नाव बस एक था,
वो ही भँवर है, वही प्रवाह है....

सत्य था, या झूठ था, तलाश बस वो एक था,
द्वन्द के धार मे, नाव बस एक था,
वही प्रवाह है, वही दोआब है....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Tuesday, 26 December 2017

ख्वाब में

कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......

आपके ही ख्वाब में......
बह रही थी ये कश्ती फिर उसी चिनाब में,
देखता हूँ मैं आपको,
कभी मझधार के हिजाब में,
या कभी आइने से बहते कलकल आब में....

कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......

आपके ही ख्वाब में......
ये आ गया हूँ मैं कहाँ, पतवार थामे हाथ में,
हसरतों के आब में,
खाली से किसी दोआब में,
या आपकी यादों के किसी अछूते महराब में....

कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......

आपके ही ख्वाब में......
सूखे से वो फूल, जग परे मेरी ही किताब में,
वो देखते हैं बाग में,
खोए है यादों के सैलाब में,
या संजोए हैं ये सपने, टूटकर अपने आप में....

कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......