Thursday, 13 August 2020

पाओगे क्या

सीने पर मेरे, सर रख कर पाओगे क्या?

गर, जिद है तो....
इस सीने पर, तुम भी, सर रख लो,
रिक्त है, सदियों से ये,
पाओगे क्या?

इन रिक्तियों में.....

है कुछ भी तो, नहीं यहाँ!
हाँ, कभी इक धड़कन सी, रहती थी यहाँ,
पर, अब है, बस इक प्रतिध्वनि,
किसी के, धड़कन की,
शायद, वो ही, सुन पाओगे!
पाओगे क्या?

इन रिक्तियों में.....

इक आकृति, थी उत्कीर्ण!
पर, अब तो शायद, वो भी हैं जीर्ण-शीर्ण,
और, सोए हों, एहसासों के तार,
भर्राए हों, दरो-दीवार,
आभाष, वो ही, कर पाओगे!
पाओगे क्या?

इन रिक्तियों में.....

टूटे बिखरे, हों कुछ पल!
समेट लेना उनको, भर लेना तुम आँचल,
कुछ कंपन, एहसासों के, देना,
पर, उम्मीद न भरना,
कल, तुम भी, छल जाओगे!
पाओगे क्या!

इन रिक्तियों में.....

गर, जिद है तो....
इस सीने पर, तुम भी, सर रख लो,
रिक्त है, सदियों से ये,
पाओगे क्या?

सीने पर मेरे, सर रख कर पाओगे क्या?

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

7 comments:

  1. हृदयस्पर्शी कविता... साधुवाद 💐

    कृपया मेरे ब्लॉग साहित्य वर्षा पर भी पधारें 🙏
    लिंक दे रही हूं -
    https://sahityavarsha.blogspot.com/2020/08/blog-post_12.html?m=1

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    1. अत्यंत ही अलौकिक कृतियाँ हैं आपके ब्लॉग पर। मैने इसे follow भी किया है।
      आप जैसी प्रतिभासम्पन्न रचनाकारों का सानिध्य पाना मेरे लिए गौरव व हर्ष का विषय है।
      साधुवाद।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ अगस्त २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. Replies
    1. आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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