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Wednesday, 24 March 2021

स्वप्न कोई खास

उलझे ये नैन, बुनते रहे, स्वप्न कोई खास!

समेट कर, सारी व्यग्रता,
भर कर, कोई चुभन,
बह चली थी, शोख चंचल सी, इक पवन,
सिमटती वो सांझ,
डूबता, गगन,
कैसे न होता, एक अजीब सा एहसास,
अधीर सा करता, एक आभास!

उलझे ये नैन, बुनते रहे, स्वप्न कोई खास!

दीप तले, सिमटती रात,
वो, अधूरी सी बात,
कोई जज्बात लिए, वो सांझ की दुल्हन,
डूबता सा आकाश,
खींचता मन,
दिलाता रहा, उन आहटों का पूर्वाभास,
अधीर सा करता, एक आभास!

उलझे ये नैन, बुनते रहे, स्वप्न कोई खास!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday, 23 September 2020

भ्रम में हम हैं

जागी सी आँखों में, बिखरा सा इक स्वप्न है,
वो सच था? या इक भ्रम में हम हैं!

क्या वो, महज इक मिथ्या था?
सत्य नहीं, तो वो क्या था?
पूर्णाभास, इक एहसास देकर वो गुजरा था,
बोए थे उसने, गहरे जीवन का आभास,
कल्पित सी, उस गहराई में,
कंपित है जीवन मेरा,
ये सच है? 
या इक भ्रम में हम हैं!

जागी सी आँखों में, बिखरा सा इक स्वप्न है,
वो सच था? या इक भ्रम में हम हैं!

सो, उठता हूँ, बस चल पड़ता हूँ!
चुनता हूँ, उन स्वप्नों को!
बुनता हूँ, टूटे-बिखरे से कंपित हर क्षण को,
भ्रम के बादल में, बुन लेता हूँ आकाश,
शायद, विस्मित इस क्षण में,
अंकित है, जीवन मेरा,
ये सच है? 
या इक भ्रम में हम हैं!

जागी सी आँखों में, बिखरा सा इक स्वप्न है,
वो सच था? या इक भ्रम में हम हैं!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday, 13 August 2020

पाओगे क्या

सीने पर मेरे, सर रख कर पाओगे क्या?

गर, जिद है तो....
इस सीने पर, तुम भी, सर रख लो,
रिक्त है, सदियों से ये,
पाओगे क्या?

इन रिक्तियों में.....

है कुछ भी तो, नहीं यहाँ!
हाँ, कभी इक धड़कन सी, रहती थी यहाँ,
पर, अब है, बस इक प्रतिध्वनि,
किसी के, धड़कन की,
शायद, वो ही, सुन पाओगे!
पाओगे क्या?

इन रिक्तियों में.....

इक आकृति, थी उत्कीर्ण!
पर, अब तो शायद, वो भी हैं जीर्ण-शीर्ण,
और, सोए हों, एहसासों के तार,
भर्राए हों, दरो-दीवार,
आभाष, वो ही, कर पाओगे!
पाओगे क्या?

इन रिक्तियों में.....

टूटे बिखरे, हों कुछ पल!
समेट लेना उनको, भर लेना तुम आँचल,
कुछ कंपन, एहसासों के, देना,
पर, उम्मीद न भरना,
कल, तुम भी, छल जाओगे!
पाओगे क्या!

इन रिक्तियों में.....

गर, जिद है तो....
इस सीने पर, तुम भी, सर रख लो,
रिक्त है, सदियों से ये,
पाओगे क्या?

सीने पर मेरे, सर रख कर पाओगे क्या?

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)