Monday, 31 August 2020

रुक जरा

पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!

चुप-चुप, ये गुनगुनाता है कौन?
हलकी सी इक सदा, दिए जाता है कौन?
बिखरा सा, ये गीत है!
कोई अनसुना सा, ये संगीत है!
है किसकी ये अठखेलियाँ,
कौन, न जाने यहाँ!

पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!

उनींदी सी हैं, किसकी पलक?
मूक पर्वत, यूँ निहारती है क्यूँ निष्पलक?
विहँस रहा, क्यूँ फलक?
छुपाए कोई, इक गहरा सा राज है!
कौन सी, वो गूढ़ बात है?
जान लूँ, मैं जरा!

पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!

कोई लिख रहा, गीत प्यार के!
यूँ हवा ना झूमती, प्रणय संग मल्हार के?
सिहरते, न यूँ तनबदन!
लरजते न यूँ, भीगी पत्तियों के बदन!
यूँ ना डोलती, ये डालियाँ!
कैसी ये खामोशियाँ!

पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

20 comments:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 1 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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  2. बेहतरीन रचना आदरणीय

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  3. चुप-चुप, ये गुनगुनाता है कौन?
    हलकी सी इक सदा, दिए जाता है कौन?
    बिखरा सा, ये गीत है!
    कोई अनसुना सा, ये संगीत है!
    है किसकी ये अठखेलियाँ,
    कौन, न जाने यहाँ!

    बहुत ही सुंदर भावपूर्ण गीत,सादर नमस्कार आपको

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 01 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (02-09-2020) को  "श्राद्ध पक्ष में कीजिए, विधि-विधान से काज"   (चर्चा अंक 3812)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  6. वाह !लाजवाब सृजन सर सराहना से परे ।
    सादर प्रणाम

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  7. सुंदर भावपूर्ण सृजन।
    अभिनव रचना।

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  8. कोई लिख रहा, गीत प्यार के!
    यूँ हवा ना झूमती, प्रणय संग मल्हार के?
    सिहरते, न यूँ तनबदन!
    लरजते न यूँ, भीगी पत्तियों के बदन!
    यूँ ना डोलती, ये डालियाँ!
    कैसी ये खामोशियाँ!
    वाह!!!!
    बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन।

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    1. आभारी हूँ आदरणीया सुधा देवरानी जी। शुक्रिया।

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  9. आदरणीय पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी, शब्दों का सुंदर चयन और समायोजन! बहुत अच्छी रचना!
    कोई लिख रहा, गीत प्यार के!
    यूँ हवा ना झूमती, प्रणय संग मल्हार के?
    सिहरते, न यूँ तनबदन!
    लरजते न यूँ, भीगी पत्तियों की फिसलन!
    हार्दिक साधुवाद!
    मैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं। सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ

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    1. अवश्य महोदय। सादर आभार व शुभकामनाएँ।

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