सोचता हूँ, कह ही दूँ!
सूई सा दंश ये, क्यूँ अकेला ही मैं सहूँ!
चाह कर भी, असंख्य बार,
कह न पाया, एक बार,
पहुँच चुका,
उम्र के इस कगार,
रुक कर, हर मोड़ पर, बार-बार,
सोचता हूँ,
गर, वक्त रहे, सत्य को सकारता,
मुड़ कर, उन्हें पुकारता,
दंश, ये न झेलता,
पर अब,
भला, कुछ कहूँ या ना कहूँ!
सोचता हूँ, कह ही दूँ!
सूई सा दंश ये, क्यूँ अकेला ही मैं सहूँ!
रोकती रही, ये कशमकश,
कर गई, कुछ विवश,
छिन चला,
इस मन का वश,
पर रहा खुला, ये मन का द्वार,
सोचता हूँ,
इक सत्य को, गर न यूँ नकारता,
भावनाओं को उकेरता,
दंश, ये न झेलता,
पर अब,
भला, कहूँ भी तो क्या कहूँ!
सोचता हूँ, कह ही दूँ!
सूई सा दंश ये, क्यूँ अकेला ही मैं सहूँ!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
.................................................
जो कहना हो, समय रहते कह देना ही बेहतर....
Happy Valentine Day
ReplyDeleteसोचता हूँ, कह ही दूँ!
सूई सा दंश ये, क्यूँ अकेला ही मैं सहूँ!
चाह कर भी, असंख्य बार,
कह न पाया, एक बार,
पहुँच चुका,
उम्र के इस कगार,
रुक कर, हर मोड़ पर, बार-बार,
सोचता हूँ,
गर, वक्त रहे, सत्य को सकारता,
मुड़ कर, उन्हें पुकारता,
दंश, ये न झेलता,
पर अब,
भला, कुछ कहूँ या ना कहूँ!
मनमोहक रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 15 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-2-21) को "माता का करता हूँ वन्दन"(चर्चा अंक-3979) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीया
Deleteसुन्दर और भावप्रवण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteनमन आदरणीय। ।।।
Deleteवाह! सुन्दर।
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteकोमल भावनाओं से युक्त सुंदर रचना..
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया।।।
Deleteभावप्रवण रचना ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी
Deleteहृदय को भेदती हुई है ये कशमकश । अति सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अमृता तन्मय जी।
Deleteसुन्दर भावों को साधती बाँधती,बहुत कुछ कहने को आतुर अनोखी रचना..
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया जिज्ञासा जी।
Deleteभावपूर्ण सार्थक रचना..
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteसत्य जितना जल्दी स्वीकार हो उतना ही अच्छा होता है ... नहीं तो वक़्त बीत जाने पर पछतावे के दंश झेलने होते हैं ...
ReplyDeleteगहरे भाव पिरोये हैं ...
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय नसवा साहेब।
Deleteभावनाओं में बहते मन का निर्बाध स्वर !!!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद्
Deleteउम्र के इस कगार,
ReplyDeleteरुक कर, हर मोड़ पर, बार-बार,
सोचता हूँ,
गर, वक्त रहे, सत्य को सकारता,
मुड़ कर, उन्हें पुकारता,
दंश, ये न झेलता, मार्मिक अभिव्यक्ति !
आदरणीया रेणु जी,
Deleteआपकी प्रतिक्रियाओं से अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार व्यक्त करूँ तो कैसे? सतत् आपने सराहा, मान बढ़ाया, यह भार उतारूँ कैसे?