एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!
किसी सुन्दरता का, बन पाता श्रृंगार,
किसी गले का, बन पाता हार,
पर, आकर्षण इतना भी नहीं मुझमें,
सुंदर इतना भी, नहीं मैं!
एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!
कौन पूछता, बेजान पड़े पत्थरों को,
सदियों से, उजड़े हुए घरों को,
जीवन्त कोई, उपसंहार नहीं जिसमे,
कुछ-कुछ, ऐसा ही मैं!
एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!
मैं तो, दूर पड़ा था, एकान्त बड़ा था,
इस मन में, व्यवधान जरा था,
कौन यहाँ, जो संग मेरे पथ पर चले,
इस लायक भी नही मैं!
एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!
है इस उर में क्या, समझे कौन यहाँ,
नादां सा मन, ऐसा और कहाँ!
पर, विराना सा, जैसे हो इक वादी,
वैसा ही, फरियादी मैं!
एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!
एहसान बड़ा, जो, आ बसे मुझ में,
स्वर लहरी बन, गा रहे उर में,
अपलक, सुनता हूँ अनसुना गीत,
बन कर, इक राही मैं!
एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!
श्रृंगार बन सका तेरा, उद्गार ले लो,
इन साँसों का, उपहार ले लो,
इक निर्धन, और दे पाऊँ भी क्या,
याचक हूँ, तेरा ही मैं!
एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुन्दर समर्पण रचना।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 19 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार महोदया
Deleteश्रृंगार बन सका तेरा, उद्गार ले लो,
ReplyDeleteइन साँसों का, उपहार ले लो,
इक निर्धन, और दे पाऊँ भी क्या,
मैं, याचक हूँ तेरा ही.... सार्थक रचना
सादर आभार महोदया
Deleteकौन पूछता है, बेजान से पत्थरों को,
ReplyDeleteसदियों से, उजड़े हुए घरों को,
जीवन्त कोई, उपसंहार नहीं जिसमे,
मैं, कुछ-कुछ, ऐसा ही!
अप्रतिम अभिव्यक्ति..
सादर आभार महोदया
Deleteश्रृंगार बन सका तेरा, उद्गार ले लो,
ReplyDeleteइन साँसों का, उपहार ले लो,
इक निर्धन, और दे पाऊँ भी क्या,
मैं, याचक हूँ तेरा ही!
समर्पण की समग्रता की स्वीकारोक्ति!!! बधाई और आभार!!!!
सादर आभार महोदय
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर आभार महोदया
Deleteइस रचना में मैने कुछ आवश्यक परिवर्तन किए हैं, ताकि अलग सा अनुभव हो।।।।।
ReplyDelete💯💯💯💯💯
बहुत ही भावपूर्ण उद्गार..सुन्दर कृति..
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया जिज्ञासा जी। शुक्रिया।
Deleteबहुत ही शानदार भावों का सृजन पुरुशोत्तान्न जी | किसी के अपनाने की कृतज्ञता और वो भी इतने भावपूर्ण शब्दों में | किसी को शुक्रिया कहने का दिलकश अंदाज | हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं|
ReplyDeleteआदरणीया रेणु जी,
Deleteआपकी प्रतिक्रियाओं से अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार व्यक्त करूँ तो कैसे? सतत् आपने सराहा, मान बढ़ाया, यह भार उतारूँ कैसे?
एहसान बड़ा, जो, आ बसे मुझ में,
ReplyDeleteस्वर लहरी बन, गा रहे उर में,
अपलक, सुनता हूँ अनसुना गीत,
बन कर, इक राही मैं!
सरलता और सादगी भरे उदगार !!!!!!
सादर आभार।।।।
Delete