Monday, 1 February 2016

फागुन रंग शिशिर संग

फागुन रंग शिशिर संग छाया,
सरस रस घट भर रंग लाया,
सजनी का उर अति हर्षाया,
सरस शिशिर सृष्टि पर लहराया।

जीर्ण आवरण उतरे वृक्षों के,
श्रृंगार कोमल पल्लव से करके,
सुशोभित कण-कण वसुधा के,
मनभावन शिशिर आज मदमाया।

हर्षित मुखरित सृष्टि के क्षण,
मधुरित धरा का कण-कण,
मधुर रसास्वाद का आलिंगण,
शिशिर अमृत रस भर ले अाया।

डाल-डाल फूलों से कुसुमित,
पेड़ तृण मूल फसल आनंदित,
मुखरित पल्लवित हरित हरित,
सरस कुसुम पल्लव मन को भाया।

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज रविवार 31 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जीर्ण आवरण उतरे वृक्षों के,
    श्रृंगार कोमल पल्लव से करके,
    सुशोभित कण-कण वसुधा के,
    मनभावन शिशिर आज मदमाया।

    हर्षित मुखरित सृष्टि के क्षण,
    मधुरित धरा का कण-कण,
    मधुर रसास्वाद का आलिंगण,
    शिशिर अमृत रस भर ले अाया।

    वाह!बेहद सुन्दर व सजीव चित्रण।
    सादर।

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  3. आनंदम् आनंदम् । अति सुन्दर ।

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