जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)
प्रशंसनीय
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक और कारुणिक !
Deleteमनोबल बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय गोपेश जी।
Deleteमनोबल बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय राकेश कौशिक जी। बहुत-बहुत स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग ।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 15 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दी
Deleteसुन्दर हायकू... कुछ हटकर..
ReplyDeleteवाह!!!
सदैव मनोबल बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी।
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ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
16/02/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Deleteछत ही जब सर पर गिरने लगे.
ReplyDeleteबेहतरीन.
मनोबल बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय रोहितास जी
Deleteबेहतरीन हाइकु .
ReplyDeleteमनोबल बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया मीना जी।
Deleteसुन्दर हाइकु
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी ।
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