Tuesday, 9 February 2021

खोखली प्रगति

विध्वंस रचा हमने, यह नहीं कोई निर्माण!
आधार-विहीन प्रगति पर, ऐ मानव!
मत कर, तू अभिमान!

प्रलय, ले आई है, भविष्य की झांकी,
त्रिनेत्र, अभी खुला है हल्का सा,
महाप्रलय, बड़ी है बाकी!
प्रगति का, कैसा यह सोपान?
चित्कार, कर रही प्रकृति,
बैठे, हम अंजान!
यह पीड़ जरा, पहले तू पहचान,
अवशेषों के, इस पथ पर, ऐ मानव!
मत कर, तू अभिमान!

विध्वंस रचा हमने, यह नहीं कोई निर्माण!

तेरी ही संतति, कल हँसे न तुझ पर!
छींटे कसे न, पीढियाँ तुझ पर,
कर नवप्रयान की तैयारी,
दे संतति को, इक नवविहान!
फिर पुकारती है, प्रकृति,
बन मत, अंजान!
ये हरीतिमा, यूँ ना हो लहुलुहान,
रक्तिम सी इस प्रगति पर, ऐ मानव!
मत कर, तू अभिमान!

विध्वंस रचा हमने, यह नहीं कोई निर्माण!
आधार-विहीन प्रगति पर, ऐ मानव!
मत कर, तू अभिमान!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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(दिनांक 07.02.2021 को उत्तराखंड में आई भीषण प्राकृतिक त्रासदी से प्रभावित)

24 comments:


  1. तेरी ही संतति, कल हँसे न तुझ पर!
    छींटे कसे न, पीढियाँ तुझ पर,
    कर नवप्रयान की तैयारी,
    दे संतति को, इक नवविहान!
    फिर पुकारती है, प्रकृति,
    बन मत, अंजान!
    ये हरीतिमा, यूँ ना हो लहुलुहान,
    रक्तिम सी इस प्रगति पर, ऐ मानव!
    मत कर, तू अभिमान..…अर्थपूर्ण रचना बधाई हो आपको आदरणीय

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    1. शुभ प्रभात व बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया।

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  2. तेरी ही संतति, कल हँसे न तुझ पर!
    छींटे कसे न, पीढियाँ तुझ पर,
    कर नवप्रयान की तैयारी,
    दे संतति को, इक नवविहान!
    फिर पुकारती है, प्रकृति,
    बन मत, अंजान!
    ..सारगर्भित, सन्देशपूर्ण एवं समसामयिक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें..

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    1. शुभ प्रभात व बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया।

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  3. आह ! हृदय चित्कार रहा है मानव जनित विध्वंस लीला देख कर । अत्यंत मर्मस्पर्शी ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय अमृता तन्मय जी।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-02-2021) को "बढ़ो प्रणय की राह"  (चर्चा अंक- 3973)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज मंगलवार 09 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. विध्वंस रचा हमने, यह नहीं कोई निर्माण!

    बहुत मार्मिक चित्रण
    सादर प्रणाम

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शिवम जी।

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  8. सामयिक प्रसंग पर सठिक रचना।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सान्याल जी।

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  9. बहुत सुंदर रचना

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  10. क्या पता हमारे आकाओ को कब अक्ल आएगी?

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  11. उत्तराखंड की विनाशक घटनाओं से भी नहीं सीख पा रहा मानव....हर बार बेगुनाह मानव मरते हैं। विकास का नहीं विनाश का पथ है यह।
    सामयिक और सार्थक रचना।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया मीना जी।

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  12. प्रकृति के असंतुलन पर जीवंत स्वर पुरुषोत्तम जी | सच में आने वाली संततियां कितना कोसेंगी हमें | क्या पता भविष्य किसी आने वाली संतति के लिए अभिशाप ही बन जाए | सादर

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    1. आदरणीया रेणु जी,
      आपकी प्रतिक्रियाओं से अभिभूत हूँ और शब्दविहीन भी। आभार व्यक्त करूँ तो कैसे? सतत् आपने सराहा, मान बढ़ाया, यह भार उतारूँ कैसे?

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