कोई, क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
कितना, टूटा क्या!
वो वृक्ष घना था, या इक वन था,
सावन था, या इक घन था,
विस्तृत जीवन का, लघु आंगन था,
विस्मित करता, वो हर क्षण था!
कोई क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
वो बचपन था, या अल्हड़पन था,
यौवन में डूबा, इक तन था,
इक दर्पण था, या, मेरा ही मन था,
कंपित होता, हर इक कण था!
कोई क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
वो आशाओं का, अवलोकन था,
अदृश्य भाव का, दर्शन था,
भावप्रवण होता, गहराता क्षण था,
विह्वल सा, वो आकुल मन था!
कोई, क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
कितना, टूटा क्या!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 31 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-09-2021) को चर्चा मंच "ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत" (चर्चा अंक- 4174) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteस्पर्शी।
शुक्रिया
Deleteवो आशाओं का, अवलोकन था,
ReplyDeleteअदृश्य भाव का, दर्शन था,
भावप्रवण होता, गहराता क्षण था,
विह्वल सा, वो आकुल मन था!
सुंदर भाव प्रवण सृजन ।
हृदय स्पर्शी।
वो आशाओं का, अवलोकन था,
ReplyDeleteअदृश्य भाव का, दर्शन था,
भावप्रवण होता, गहराता क्षण था,
विह्वल सा, वो आकुल मन था!
सुंदर मन को छूती रचना...
शुक्रिया
Deleteपुरुषोत्तम कुमार सिन्हा की रचना 'कोई, क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
ReplyDeleteकितना, टूटा क्या!
वो वृक्ष घना था, या इक वन था,
सावन था, या इक घन था,
विस्तृत जीवन का, लघु आंगन था,
विस्मित करता, वो हर क्षण था!
अतीत को कुरेद दबे पाँव निकल जाती है।
शुक्रिया
Deleteवो बचपन था, या अल्हड़पन था,
ReplyDeleteयौवन में डूबा, इक तन था,
इक दर्पण था, या, मेरा ही मन था,
कंपित होता, हर इक कण था!
सच, कोई क्या जाने, पीछे छूटा क्या.....आगे बढ़ते-बढ़ते जब एक पल के लिए रुक पीछे देखते हैं तो ये हुक तो उठती ही है,क्या-क्या छोड़ आये हम...
हृदयस्पर्शी सृजन,सादर नमन
शुक्रिया
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ReplyDeleteवो आशाओं का, अवलोकन था,
अदृश्य भाव का, दर्शन था,
भावप्रवण होता, गहराता क्षण था,
विह्वल सा, वो आकुल मन था....अतिसुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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