Monday, 2 August 2021

कर कुछ बात

ऐ रात, तू ही कर, कुछ बात,
बयां तू ही कर, क्या हैं तेरे हालात!

तू, मेरी बात न कर,
छोड़ आया, कहीं, मैं उजालों का शहर,
जलते, अंगारों का सफर,
भड़के, जज्बात!

बयां तू ही कर, क्या हैं तेरे हालात!

है तेरी बातें, अलग,
सोए रातों में, जागे जज्बातों का विहग,
बुझे, जली आग सुलग,
संभले, लम्हात!

बयां तू ही कर, क्या हैं तेरे हालात!

तू है, तारों का सफर,
सुलगते अंगारों से, भला तुझे क्या डर,
यूँ, सर्द आहें, तू ना भर,
भीगे, पात-पात!

बयां तू ही कर, क्या हैं तेरे हालात!

मैं तो, दिन का जला,
मीलों, उम्र भर संग, अनथक मैं चला,
पर, अचानक वो ढ़ला,
कहाँ कोई, साथ!

ऐ रात, तू ही कर, कुछ बात,
बयां तू ही कर, क्या हैं तेरे हालात!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

8 comments:

  1. मैं तो, दिन का जला,
    मीलों, उम्र भर संग, अनथक मैं चला,
    पर, अचानक वो ढ़ला,
    कहाँ कोई, साथ!

    ऐ रात, तू ही कर, कुछ बात,
    बयां तू ही कर, क्या हैं तेरे हालात...बेहतरीन रचना लाज़वाब

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(०४-०८-२०२१) को
    'कैसे बचे यहाँ गौरय्या!'(चर्चा अंक-४१४६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. तू है, तारों का सफर,
    सुलगते अंगारों से, भला तुझे क्या डर,
    यूँ, सर्द आहें, तू ना भर,
    भीगे, पात-पात! बहुत सुंदर भावों का सृजन।

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  4. बहुत सुंदर! लाजवाब दग्ध मन के उद्गार।
    अप्रतिम।

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