भरमाती, संग चली आई, वही पुरवाई!
कितनी ठंढ़ी सी, छुवन,
जागे, लाख चुभन,
वही रातें, वही सपने, फिर लिए आई,
भरमाए पुरवाई!
बांधे, अपनेपन के धागे,
संग, पीछे ही भागे,
वही खुश्बू, वही यादें, लिए चली आई,
भरमाए पुरवाई!
छोड़, सारे लाज शरम,
तोड़, मन के भरम,
राहें, पीपल सी वो बाहें, भरे अंगड़ाई,
भरमाए पुरवाई!
उड़ा ले जाए, दूर कहाँ,
संग, है कौन यहाँ,
धूँधला, वो जहाँ, हो जाए न, रुसवाई,
भरमाए पुरवाई!
कर दे, कभी नैन सजल,
यादों के, वो पल,
विह्वल कर जाए, वो धुन, वो शहनाई,
भरमाए पुरवाई!
चुन लाता, बिखरे मोती,
वो आशा-ज्योति,
चंचल, बहकी सी पवन, बड़ी सौदाई,
भरमाए पुरवाई!
भरमाती, संग चली आई, वही पुरवाई!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 08 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-8-21) को "रोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन"(चर्चा अंक- 4150) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
विनम्र आभार
Deleteबहुत सुंदर।🌼
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteबांधे, अपनेपन के धागे,
ReplyDeleteसंग, पीछे ही भागे,
वही खुश्बू, वही यादें, लिए चली आई,
भरमाए पुरवाई!
बहुत ही सुंदर सृजन!
विनम्र आभार
Delete
ReplyDeleteचुन लाता, बिखरे मोती,
वो आशा-ज्योति,
चंचल, बहकी सी पवन, बड़ी सौदाई,
भरमाए पुरवाई!
भरमाती, संग चली आई, वही पुरवाई!
...प्रीत की आस जगाती सुंदर रचना।
विनम्र आभार
Deleteचुन लाता, बिखरे मोती,
ReplyDeleteवो आशा-ज्योति,
चंचल, बहकी सी पवन, बड़ी सौदाई,
भरमाए पुरवाई!
भरमाती, संग चली आई, वही पुरवाई!
बहुत सुंदर रचना
विनम्र आभार
Deleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteबहुत ही सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसादर
विनम्र आभार
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति, प्यारी सी पंक्तियां
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteसुन्दर लेखन
ReplyDeleteविनम्र आभार
Delete