कौन यहां, विशेष है?
सब, बहते वक्त के अवशेष हैं!
कुछ बीत चुके, कुछ बीत रहे,
कुछ शेष है!
कौन यहां, विशेष है?
बस, पथ यह अभिमान भरा,
और, झूले सपनों के,
स्व से, स्वत्व का अवलोकन कौन करे?
सत्य के, अंतहीन विमोचन में,
जाने कितना अशेष है?
कौन यहां, विशेष है?
दलदल, और अंधियारा पथ,
खींच रहे सब, रथ,
ये पग कीचड़ से लथपथ, कैसे गौर करे!
अर्ध-सत्यों की, अन-देखी में,
जाने कितना अशेष है?
कौन यहां, विशेष है?
धूमिल स्वप्न सा, यह जीवन,
हाथों में, कब आए,
ये धूल, किधर उड़ जाए, कैसे ठौर करे!
उस दिग-दिगंत को, पाने में,
जाने कितना अशेष है?
कौन यहां, विशेष है?
कौन यहां, विशेष है?
सब, बहते वक्त के अवशेष हैं!
कुछ बीत चुके, कुछ बीत रहे,
कुछ शेष है!
कौन यहां, विशेष है?
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 08 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार आदरणीया दी
Deleteजो अविशेष है वही जानने योग्य है, विशेष तो सांत है, सीमित है, मिट रहा है हर पल, जो रह जाता है हर बार वह अविशेष है, सुंदर सृजन!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteकौन यहां विशेष है, एक आसमान के नीचे एक धरती के ऊपर तुम हम हम तुम।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteकौन यहां, विशेष है?
ReplyDeleteसब, बहते वक्त के अवशेष हैं!
फिर गुमान कैसा...
बहुत सुन्दर
वाह!!!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया सुधा देवरानी जी
Deleteकौन यहां, विशेष है?
ReplyDeleteसब, बहते वक्त के अवशेष हैं!
फिर गुमान कैसा...
बहुत सुन्दर
वाह!!!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया सुधा देवरानी जी
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