जागो तुम, किसी की चेतना में,
सो जाना फिर,
खो जाना,
उसी की वेदना में!
यूं, आसां कहां, जगह पाना!
चेतना में, किसी की सदा रह जाना,
मन अचेतन,
न जाने, देखे कौन सा दर्पण!
कब कहां, करे, खुद को अर्पण!
किसी की चेतना मे!
यूं वेदना की तपती धरा पर,
सिमट कर, धूप सेकती है, चेतना!
सिसक कर,
सन्ताप में, दम तोड़ती कब!
मन भटकता, धूंध के पार, तब,
किसी की चेतना मे!
सो लो तुम, किसी की वेदना में,
जाग लेना फिर,
खो जाना,
उसी की चेतना में!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नितीश जी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 03 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार आदरणीया
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूबसूरत सृजन!
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाओं सहित आभार...
Deleteयूं, आसां कहां, जगह पाना!
ReplyDeleteचेतना में, किसी की सदा रह जाना,
मन अचेतन,
न जाने, देखे कौन सा दर्पण!
कब कहां, करे, खुद को अर्पण!
राह ! बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
नववर्ष की शुभकामनाओं सहित आभार...
Deleteसुन्दर शुभ हो नववर्ष
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाओं सहित आभार...
Deleteयूं, आसां कहां, जगह पाना!
ReplyDeleteचेतना में, किसी की सदा रह जाना,
मन अचेतन,
न जाने, देखे कौन सा दर्पण!
कब कहां, करे, खुद को अर्पण!
वाह!!!!
बहुत सुंदर लाजवाब सृजन ।
नववर्ष की शुभकामनाओं सहित आभार...
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