Sunday, 1 January 2023

चेतना

जागो तुम, किसी की चेतना में,
सो जाना फिर,
खो जाना,
उसी की वेदना में!

यूं, आसां कहां, जगह पाना!
चेतना में, किसी की सदा रह जाना,
मन अचेतन,
न जाने, देखे कौन सा दर्पण!
कब कहां, करे, खुद को अर्पण!
किसी की चेतना मे!

यूं वेदना की तपती धरा पर,
सिमट कर, धूप सेकती है, चेतना!
सिसक कर,
सन्ताप में, दम तोड़ती कब!
मन भटकता, धूंध के पार, तब,
किसी की चेतना मे!

सो लो तुम, किसी की वेदना में,
जाग लेना फिर,
खो जाना,
उसी की चेतना में!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

12 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता।

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 03 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. वाह!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूबसूरत सृजन!

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  4. यूं, आसां कहां, जगह पाना!
    चेतना में, किसी की सदा रह जाना,
    मन अचेतन,
    न जाने, देखे कौन सा दर्पण!
    कब कहां, करे, खुद को अर्पण!
    राह ! बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  5. यूं, आसां कहां, जगह पाना!
    चेतना में, किसी की सदा रह जाना,
    मन अचेतन,
    न जाने, देखे कौन सा दर्पण!
    कब कहां, करे, खुद को अर्पण!
    वाह!!!!
    बहुत सुंदर लाजवाब सृजन ।

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