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Monday, 31 August 2020

रुक जरा

पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!

चुप-चुप, ये गुनगुनाता है कौन?
हलकी सी इक सदा, दिए जाता है कौन?
बिखरा सा, ये गीत है!
कोई अनसुना सा, ये संगीत है!
है किसकी ये अठखेलियाँ,
कौन, न जाने यहाँ!

पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!

उनींदी सी हैं, किसकी पलक?
मूक पर्वत, यूँ निहारती है क्यूँ निष्पलक?
विहँस रहा, क्यूँ फलक?
छुपाए कोई, इक गहरा सा राज है!
कौन सी, वो गूढ़ बात है?
जान लूँ, मैं जरा!

पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!

कोई लिख रहा, गीत प्यार के!
यूँ हवा ना झूमती, प्रणय संग मल्हार के?
सिहरते, न यूँ तनबदन!
लरजते न यूँ, भीगी पत्तियों के बदन!
यूँ ना डोलती, ये डालियाँ!
कैसी ये खामोशियाँ!

पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)