Showing posts with label अनुरूप. Show all posts
Showing posts with label अनुरूप. Show all posts

Wednesday, 1 October 2025

अनुरूप

मन चाहे, अनुरूप तेरे ढ़ल जाऊं, 
और, गीत वही दोहराऊं!

इक मैं ही हूं, जब तेरी हर आशाओं में,
मूरत मेरी ही सजती, जब, तेरे मन की गांवों में,
भिन्न भला, तुझसे कैसे रह पाऊं,
क्यूं और कहीं, ठाव बसाऊं!

मन चाहे, अनुरूप तेरे ढ़ल जाऊं...

सपने, जो तुम बुनती हो मुझको लेकर,
रंग नए नित भरती हो, इस मन की चौखट पर,
हृदय, उस धड़कन की बन जाऊं,
कहीं दूर भला, कैसे रह पाऊं!

मन चाहे, अनुरूप तेरे ढ़ल जाऊं...

बहती, छल-छल, तेरे नैनों की, सरिता,
गढ़ती, पल-पल, छलकी सी अनबुझ कविता,
यूं कल-कल, सरिता में बह जाऊं,
कविता, नित वो ही दोहराऊं!

मन चाहे, अनुरूप तेरे ढ़ल जाऊं...

मुझ बिन, अधूरी सी, है तेरी हर बात, 
अधूरी सी, हर तस्वीर, अधूरे, तेरे हर जज्बात,
संग कहीं, जज्बातों में, बह जाऊं,
संग उन तस्वीरों में ढल जाऊं!

मन चाहे, अनुरूप तेरे ढ़ल जाऊं...
और, गीत वही दोहराऊं!