बहुधा, गिनता रहता हूँ, पल-पल,
बस यूँ, चुपचाप!
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
लगता है, इस पल तुम आए हो,
यूँ बैठे हो, पास!
सुखद वही, इक एहसास,
तेरा ही आभास,
और चुप-चुप,
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
बहुधा, कहीं बहती है इक सुधा,
बस यूँ, चुपचाप!
शायद, हों उनके अनुलाप,
करती हो आलाप,
थम-थम कर,
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
मन भरमाए, वो हर इक आहट,
हर वो, पदचाप!
दोहराए, वो ही अभिलाप,
वो ही एकालाप,
करे रुक-रुक,
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
बहुधा, गिनता रहता हूँ, पल-पल,
बस यूँ, चुपचाप!
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)