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Saturday, 13 November 2021

अनकहे

दिलों को भेद जाएंगे, ये अनकहे तेरे,
कुछ कहो ना!

हो शिकायत, तो, खुल के कहो,
ना बंध कर रहो, प्रवाह बन कर बहो,
घुट-कर, ना चुप-चुप जियो,
विचलित करे, ये तेरी अन्त:घुटन,
भीगे, अन्त:करण तक ये मेरे,
चुप रहो ना!

दिलों को भेद जाएंगे, ये अनकहे तेरे, 
कुछ कहो ना!

अन्तर्मन, पढ़ न पाया मैं तेरा,
रहा अनभिज्ञ मैं, तेरे मन गढ़ा क्या,
मन ही तेरा, ना जीत पाया,
मैं, जीतकर भी, हारा दोनों जहां,
लगे हैं डगमगाने, विश्वास मेरे,
थाम लो ना!

दिलों को भेद जाएंगे, ये अनकहे तेरे, 
कुछ कहो ना!

चले थे परस्पर, इक राह पर,
विश्वास की ही, डोरी इक थामकर,
है अब भी अधूरा ये सफर,
रख दो, अन्त:करण ये खोलकर,
तोड़ दो, मन के भरम ये मेरे,
हाथ दो ना!

दिलों को भेद जाएंगे, ये अनकहे तेरे, 
कुछ कहो ना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)