तुम जिस पल थे,
वो ही थे,
आकर्षण के दो पल!
तुम थे तो,
जागे थे नींद से ये एहसास,
धड़कन थी कुछ खास,
ठहरी सी थी साँस,
आँखों नें,
देखे थे कितने ही ख्वाब,
व्याकुल था मन,
व्याप गई थी इक खामोशी,
न जाने ये,
थी किसकी सरगोशी,
तन्हाई में,
तेरी ही यादों के थे पल!
तुम जिस पल थे,
वो ही थे,
आकर्षण के दो पल!
तुम थे तो,
वो पल था कितना चंचल,
नदियों सा बहता था,
वो पल कल-कल,
हवाओं में,
प्रतिध्वनि सी थी हलचल,
तरंगों सी लहरें,
विस्मित करती थी पल-पल,
खींचती थी,
छुन-छुन बजती पायल,
क्षण भर में,
सदियाँ गुजरी थी उस पल!
तुम जिस पल थे,
वो ही थे,
आकर्षण के दो पल!
तुम थे तो,
अधूरा सा न था ये आंगण,
मूर्त हुई थी चित्रकलाएं,
बोलती थी तस्वीरें,
अंधेरों में,
जग पड़ते थे कितने तारे,
सजता था गगन,
गुम-सुम कुछ कहते थे तुम,
तारों संग,
विहँसते थे वो बादल,
उन बातों में,
जीवन्त थे रातों के पल!
तुम जिस पल थे,
वो ही थे,
आकर्षण के दो पल!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
वो ही थे,
आकर्षण के दो पल!
तुम थे तो,
जागे थे नींद से ये एहसास,
धड़कन थी कुछ खास,
ठहरी सी थी साँस,
आँखों नें,
देखे थे कितने ही ख्वाब,
व्याकुल था मन,
व्याप गई थी इक खामोशी,
न जाने ये,
थी किसकी सरगोशी,
तन्हाई में,
तेरी ही यादों के थे पल!
तुम जिस पल थे,
वो ही थे,
आकर्षण के दो पल!
तुम थे तो,
वो पल था कितना चंचल,
नदियों सा बहता था,
वो पल कल-कल,
हवाओं में,
प्रतिध्वनि सी थी हलचल,
तरंगों सी लहरें,
विस्मित करती थी पल-पल,
खींचती थी,
छुन-छुन बजती पायल,
क्षण भर में,
सदियाँ गुजरी थी उस पल!
तुम जिस पल थे,
वो ही थे,
आकर्षण के दो पल!
तुम थे तो,
अधूरा सा न था ये आंगण,
मूर्त हुई थी चित्रकलाएं,
बोलती थी तस्वीरें,
अंधेरों में,
जग पड़ते थे कितने तारे,
सजता था गगन,
गुम-सुम कुछ कहते थे तुम,
तारों संग,
विहँसते थे वो बादल,
उन बातों में,
जीवन्त थे रातों के पल!
तुम जिस पल थे,
वो ही थे,
आकर्षण के दो पल!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 27 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... मुखरित मौन पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार दी
Deleteबहुत सुंदर ...आगे बढने फलसफ़ा देती नज्म ....बधाई .
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय संजय जी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2019) "परिवार का महत्व" (चर्चा अंक-3318) को पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
--अनीता सैनी
आभारी हूँ आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर रचना आदरणीय
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय अनुराधा जी
Deleteबहुत खूब आदरणीय पुरुषोत्तम जी। किसी के साथ बिताए कुछ पल हमारे जीवन का स्थाई सम्बल बन जाते हैं। सुंदर, भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और आभार।
ReplyDeleteनमन व आभार आदरणीया रेणु जी।
Delete
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
28/04/2019 को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
सादर आभार आदरणीय कुलदीप जी।
Deleteतुम थे तो सब कुछ था...बहुत सुन्दर भखवो से सजी लाजवाब रचना...
ReplyDeleteवाह!!!
सदैव आभारी हूँ आदरणीया सुधा देवरानी जी ।
ReplyDeleteसुंंदर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया पम्मी जी।
Deleteबहुत ही रोमांटिक कविता
ReplyDeleteआपने पसंद किया, आभारी हूँ आदरणीय रवीन्द्र जी।
ReplyDeleteअहसासों से भरी सुंदर रचना ,बधाई हो
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीया । स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर।
Deleteतुम थे तो,
ReplyDeleteअधूरा सा न था ये आंगण,
मूर्त हुई थी चित्रकलाएं,
बोलती थी तस्वीरें,
अंधेरों में,
जग पड़ते थे कितने तारे,
सजता था गगन,
बहुत सुंदर गहराई तक एहसासों को सहलाते उद्गगार ।
अप्रतिम।
शुक्रिया आभार आदरणीया कुसुम जी। बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteजिंदगी के इन्ही दो पलों को लेकर पूरा जीवन जीने का लाजवाब अंदाज़ ...
ReplyDeleteफिर प्रेम की दो पल सच में काफी हैं चार पल की जिंदगी के लिए ... बेह्त्रें रचना ...
प्रेरक शब्दों हेतु आभार आदरणीय नसवा जी।
Delete
ReplyDeleteWhat a wonderful expression
Thanks Sri Avinash ji
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