Friday, 29 January 2021

अर्धसत्य सा

सत्य है यह, या थोड़ा सा अर्धसत्य!

सत्य, क्या महज इक नजरिया?
या समक्ष होकर, कहीं कुछ है विलुप्त!
फिर, जो समक्ष है, उसका क्या?
जो प्रभाव डाले, उसका क्या?

सत्य है यह, या थोड़ा सा अर्धसत्य!

पहाड़ों पर, वो तलाशते हैं क्या?
वो अनवरत, पत्थरों को सींचते हैं क्यूँ?
सजदे में क्यूँ, झुक जाते हैं सर?
क्यूँ दुआ कर जाती है असर?

सत्य है यह, या थोड़ा सा अर्धसत्य!

जो समक्ष है, क्या वही है सत्य?
या इक दूसरा भी रुख है, नजर के परे!
जो नजर ना आए, उसका क्या?
जो, महसूस हो, उसका क्या?

सत्य है यह, या थोड़ा सा अर्धसत्य!

उलझा सा, ये द्वन्द या जिज्ञासा!
क्यूँ लगे समान, दुविधा या समाधान?
क्यूँ, ये दो पहलू, संयुक्त सर्वदा?
असत्य के मध्य, सत्य छिपा!

सत्य है यह, या थोड़ा सा अर्धसत्य!

मानो, तो ईश्वर, ना, तो पत्थर!
विकल्प दोनों, पलते मन के अन्दर!
इक कल्पना, या इक आकार!
क्या ये सत्य, बिना आधार!

सत्य है यह, या थोड़ा सा अर्धसत्य!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

22 comments:

  1. वाह! विचारणीय सृजन,सुंदर पंक्तियाँ 👌
    सत्य क्या है,कितना है,है भी या नही है या बस सभी का अलग नज़रिया है सत्य? ऐसे तमाम प्रश्न उठाती यह रचना सत्य की नवीन परिभाषा लिखती है। बेहद उम्दा 👌
    सादर प्रणाम 🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आँचल जी..आभारी हूँ।

      Delete

  2. उलझा सा, ये द्वन्द या जिज्ञासा!
    क्यूँ लगे समान, दुविधा या समाधान?
    क्यूँ, ये दो पहलू, संयुक्त सर्वदा?
    असत्य के मध्य, सत्य छिपा!

    सत्य है यह, या थोड़ा सा अर्धसत्य..... उम्दा रचना बधाई हो आपको

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद शकुन्तला जी..आभारी हूँ।

      Delete
  3. जीवन दर्शन से सज्जित, सत्य का अवलोकन करती हुई सुन्दर रचना..

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी..आभारी हूँ।

      Delete
  4. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आ. मयंक जी..आभारी हूँ।

      Delete
  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 29 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  6. हमेशा की तरह खूबसूरत रचना ।
    सादर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सधु जी..आभारी हूँ।

      Delete
  7. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सान्याल जी..आभारी हूँ।

      Delete
  8. मानो, तो ईश्वर, ना, तो पत्थर!
    विकल्प दोनों, पलते मन के अन्दर!
    इक कल्पना, या इक आकार!
    क्या ये सत्य, बिना आधार!
    सदियों से सभी के लिए बहुत चिंतनपरक विषय का गहन अन्वेषण करती रचना पुरुषोत्तम जी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ||

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया रेणु जी..। आभारी हूँ।

      Delete
  9. उलझा सा, ये द्वन्द या जिज्ञासा!
    क्यूँ लगे समान, दुविधा या समाधान?
    क्यूँ, ये दो पहलू, संयुक्त सर्वदा?
    असत्य के मध्य, सत्य छिपा!

    समूचा जीवनदर्शन है इन पंक्तियों में !!!
    बहुत सुंदर रचना 🌹🙏🌹

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया डा शरद जी।

      Delete
  10. बहुत ही सुंदर सृजन।

    ReplyDelete