उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत,
सिमटोगे, लकीरों में, कब तक!
झंकृत, हो जाएं कोई पल,
तो इक गीत सुन लूँ, वो पल ही चुन लूँ,
मैं, अनुरागी, इक वीतरागी,
बिखरुं, मैं कब तक!
उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत..
आड़ी तिरछी, सब लकीरें,
यूँ ही उलझे पड़े, कब से तुझको ही घेरे,
निकल आओ, सिलवटों से,
यूँ देखूँ, मैं कब तक!
उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत..
उतरे हो, यूँ सांझ बन कर,
पिघलने लगे हो, सहज चाँद बन कर,
यूँ टंके हो, मन की गगन पर,
निहारूँ, मैं कब तक!
उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत..
खोने लगे हैं, जज्बात सारे,
भला कब तक रहें, ख्वाबों के सहारे,
नैन सूना, ये सूना सा पनघट,
पुकारूँ, मैं कब तक!
उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत,
सिमटोगे, लकीरों में, कब तक!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
अतिसुंदर रचना
ReplyDeleteआभार आदरणीया शकुन्तला जी।
Deleteवाह्ह्ह्ह्ह्ह!
ReplyDeleteसराहनीय,सुंदर पंक्तियाँ,भावपूर्ण सृजन।
सादर प्रणाम 🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद आँचल जी ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-04-2021) को "आदमी के डसे का नही मन्त्र है" (चर्चा अंक-4033) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सत्य कहूँ तो हम चर्चाकार भी बहुत उदार होते हैं। उनकी पोस्ट का लिंक भी चर्चा में ले लेते हैं, जो कभी चर्चामंच पर झाँकने भी नहीं आते हैं। कमेंट करना तो बहुत दूर की बात है उनके लिए। लेकिन फिर भी उनके लिए तो धन्यवाद बनता ही है निस्वार्थभाव से चर्चा मंच पर टिप्पी करते हैं।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभार आदरणीय। ।।।
Deleteबहुत खूबसूरत रचना,उभर आओ न बनकर हकीकत,बेहद सुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया भारती जी।।।।
Deleteसंवेदनाओं की नम जमीं पर उभरे बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबधाई
पटल पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं हर्षित और उत्साहित हूँ। विनम्र आभार व बार-बार पधारने हेतु निवेदन स्वीकार करें। ।।।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज शनिवार १० अप्रैल २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
आभार आदरणीया। ।।।
Deleteइतने मनुहार से बुलायेंगे तो आना ही पड़ेगा . सुन्दर गीत
ReplyDeleteजी,....
Deleteआभार आदरणीया
आपकी सुंदर भावों भरी कविता मन को छू गई। सादर शुभकामनाएं पुरषोत्तम जी ।
ReplyDeleteविनम्र आभार। बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया जिज्ञासा जी।
Deleteखूबसूरत , मनभावन रचना है।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई!
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ज्योत्सना जी।
Deleteपढ़ते-पढ़ते धुन बनने लगी । अति मनभावन गेय गीत-सा ।
ReplyDeleteरचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर मैं हर्षित और आह्लादित हूँ। विनम्र आभार व बार-बार पधारने हेतु निवेदन स्वीकार करें। ।।।
Deleteउभर आओ ना, बन कर इक हकीकत,
ReplyDeleteसिमटोगे, लकीरों में, कब तक
सुन्दर भावपूर्ण लेखन...
आदरणीय शीलव्रत जी, स्वागत है आपका इस पटल पर।
Deleteप्रोत्साहित करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद , आभार।