यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
एहसासों में पिरोया, लेकिन अध-बुना,
मन में गुंजित, फिर भी अनसुना,
लबों पर अंकित, पर शून्य सा, शब्द बिना!
न हमने कहा, न तुमने सुना!
यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
घुमरते, भटकते, इस काल कपोल में,
न कोई ग्रन्थ, न ही कोई संग्रह,
चुप से रहे, अभिव्यक्त हो न सके बोल में!
खटकते रहे, मन में रह-रह!
यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
अभिलेखित थे सदा, पर थे निःशब्द,
सुसज्जित, हमेशा रहे थे शब्द,
अव्यवस्थित से क्यूं, न जाने हुए हैं शब्द!
हरकत से, कर रहे वो शब्द!
यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
यूं कब तक, चुप रहे, बिन कुछ कहे,
गुम-सुम सा रहे, हाथों को गहे,
दहशत सी कोई, होने लगी है अब उसे!
वहशत में, शायद कुछ कहे!
यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
एहसासों में पिरोया, लेकिन अध-बुना,
मन में गुंजित, फिर भी अनसुना,
लबों पर अंकित, पर शून्य सा, शब्द बिना!
न हमने कहा, न तुमने सुना!
यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
घुमरते, भटकते, इस काल कपोल में,
न कोई ग्रन्थ, न ही कोई संग्रह,
चुप से रहे, अभिव्यक्त हो न सके बोल में!
खटकते रहे, मन में रह-रह!
यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
अभिलेखित थे सदा, पर थे निःशब्द,
सुसज्जित, हमेशा रहे थे शब्द,
अव्यवस्थित से क्यूं, न जाने हुए हैं शब्द!
हरकत से, कर रहे वो शब्द!
यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
यूं कब तक, चुप रहे, बिन कुछ कहे,
गुम-सुम सा रहे, हाथों को गहे,
दहशत सी कोई, होने लगी है अब उसे!
वहशत में, शायद कुछ कहे!
यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा