तुम नभ की सुन लो, जरा सा नभ संग तुम भींग लो!
उमड़-घुमड़ नभ आते तुझसे मिलने,
लटें घुँघराली पुकारती हैं आकाश से,
नभ मंडल गूंजित करती आवाज से,
नभ की गर्जना सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!
मंद मंद फाहा सी गिर रही बूंदे नभ से,
कण कण धरा की भीग रहे हैं बूंदों से,
तुम भी पीड़ हृदय के बूंदों संग धो लो,
नभ की साधना सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!
है वो कौन सी पीड़ जो है नभ से भारी,
नभ नीर से सागर की प्यास बुझ जाती,
विचर रही नभ यहाँ भिगोने तुमको ही,
नभ की वेदना सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!
उधर लताओं संग भीग रहे हैं पत्ते पत्ते,
फूल भीगी संग सारे कलियाँ भी भींगे,
नभवृष्टि प्रेम में हृदय के तार तार भींगे,
नभ की प्रेमलीला सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!