ओ तथागत!
प्रतिक्षण, थी तेरी ही, इक प्रतीक्षा!
जबकि, मैं, बेहद खुश था,
नववर्ष की, नूतन सी आहट पर,
उसी, कोमल तरुणाहट पर!
गुजरा वो, क्षण भी! तुम आए...
ओ तथागत!
कितने कसीदे, पढ़े स्वागत में तेरी!
मान-मनौवल, आवभगत,
जैसे कि, तुम थे कोई अभ्यागत,
पर, तुम तो बिसार चले हो!
गुजरा वो, क्षण भी! तुम चले...
ओ तथागत!
बड़ी खोखली, पाई तेरी ही झोली!
जाते-जाते, ले गए तुम,
मेरी ही, तरुणाई के इक साल!
और, छोड़ गए हो तन्हा!
ओ तथागत!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)