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Friday, 19 June 2020

मन हो चला पराया

मेरी सुसुप्त संवेेेेदनाओं को फिर पिरोने,
वो कौन आया?
मन हो चला पराया!

लचकती डाल पर,
जैसे, छुप कर, कूकती हो कोयल,
कदम की ताल पर,
दिशाओं में, गूंजती हो पायल,
है वो रागिनी या है वो सुरीली वादिनी!
वो कौन है?
जो लिए, संगीत आया!

जग उठी, सोई सी संवेदनाएँ,
मन हो चला पराया!

आँखें मूंद कोई,
कुछ कह गया हो, प्यार बनकर,
गिरी हो बूँद कोई,
घटा से, पहली फुहार बनकर,
है वो पवन, या वो है नशीला सावन!
वो कौन है?
जो लिए, झंकार आया!

जग उठी, सोई सी संवेदनाएँ,
मन हो चला पराया!

चहकती सी सुबह,
जैसे, जगाती है झक-झोरकर,
खोल मन की गिरह,
कई बातें सुनाती है तोलकर,
है वो रौशनी या वो है कोई चाँदनी!
वो कौन है?
जो लिए, पुकार आया!

मेरी सुसुप्त संवेेेेदनाओं को फिर पिरोने,
वो कौन आया?
मन हो चला पराया!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)