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Thursday, 14 January 2016

तुम झूठी दिलाशा मत दो


तुम मुझको झूठी दिलासा मत दो!

जाने तुझमें, तेरी गहरी आँखों में क्या देखता हूँ?
लहरों के आँचल से कुछ चुनता हूँ,
दहकती रेत में फसलें बोता हूँ,
काली रातों में उजली रौशनी ढूंढता हूँ,
तेरी बातों का हर पल आसरा ढूंढ़ता हूँ,
जो बातें असंभव हैं, वो ख्वाब बुनता हूँ,
दिवा स्वप्न सी आभा में खुद को खोता हूँ।

तुम मुझको झूठी दिलासा मत दो!

जाने तुझमें, तेरी मीठी बातों में क्या देखता हूँ?
रेत के महलों में आश्रय ढूंढ़ता हूँ,
मृग मरीचिका से गहरे रंग मांगता हूँ,
तास के घरों मे बूंदो से बचना चाहता हूँ,
निशा रात्रि प्रहर में पक्षी के सुर चाहता हूँ,
अंधेरी राहों मे उज्जवल प्रश्रय चाहता हूँ,
मीठे स्वर के मधुकंपन में खुद को खोता हूँ।

तुम मुझको झूठी दिलासा मत दो!