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Friday, 25 December 2015

क्षण-क्षण मधु-स्मृतियाँ

धुँधली रेखायें, खोई मधु-स्मृतियों के क्षण की,
चमक उठें हैं फिर, विस्मृतियों के काले घन में,

घनघोर झंझावात सी उठती विस्मृतियों की,
प्रलय उन्माद लिए, उर मानस कम्पन में,

जाग उठी नींद असंख्य सोए क्षणों की,
हृदय प्राण डूब रहे, अब धीमी स्पन्दन में,

गहरी शिशिर-निशा में गूंजा जीवन का संगीत,
जीवन प्रात् चाहे फिर, अन्तहीन लय कण-कण में,

जीवन पार मृत्यु रेखा निश्चित और अटल सी,
प्राण अधीर प्रतिपल चाहे मधुर विस्मृति प्रांगण मे,

बीते क्षणों के स्पंदन में जीवन-मरण परस्पर साम्य,
मिले जीवन सौन्दर्य, मर्त्य दर्शन, प्रतिपल हर क्षण में,

धुँधली रेखाओं की उन खोई मधु-स्मृतियों संग,
कर सकूं मृत्यु के प्रति, प्राणों का आभार क्षण-क्षण में!