नयन-नयन, कितने सूने क्षण!
निखरते थे कल, नैनों में काजल,
प्रवाह नयन के, कब रुकते थे कल-कल,
हँसी, विषाद के वो पल,
अब कितने, नासाद हो चले,
सूख चले, नैनों से आँसू,
रूठ चले, ये क्षण!
उपवन-उपवन, सूखे कितने ये घन,
नयन-नयन, कितने सूने क्षण!
इच्छाओं के घेरों में, निस्पृह मन,
ज्यूँ, निस्संग, कोई तुरंग, भागे यूँ सरपट,
सूने से, उन सपनों संग,
विवश, बंद-बंद अपने आंगन,
जागी सी, इच्छाओं संग,
कैद हुए, ये क्षण!
निस्पृह, आंगन-आंगन कामुक मन,
नयन-नयन, कितने सूने क्षण!
इच्छाएं, छलक उठती थी जिनसे,
कुछ उदास क्षण, अब झांकते हैं उनसे,
सूने हैं, नैनों के दो तट,
विरान, इच्छाओं के ये पनघट,
अब क्या, रोकेंगी राहें,
निस्पृह, ये क्षण!
नयन-नयन, कितने सूने क्षण!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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