वाद-परिवाद, चर्चा-परिचर्चा,
निष्कर्ष इन सबका हो कोई, तो हो अच्छा..
होते रहे परिवाद, घटते रहे विवाद,
मिटते रहे मन के सारे विषाद,
कुछ याद रखने लायक हो जो वाद,
स्वाद सबके जीवन में भरे, तो हो अच्छा...
निरर्थक ही हो जब बातों के मंथन,
निरर्थक हो जज्बातों के गूंथन,
फिर टूट जाते है मन के ये अवगुंठन,
जब अर्थ भरे जज्बातों में, तो हो अच्छा....
चर्चा हो मन के असह्य पीड़ा की,
वेदना में तपते से जीवन की,
विरह में जलते मन के आलिंगन की,
सावन में सूखे की हो चर्चा, तो हो अच्छा....
जो क्रियात्मकता का करे सृजन,
ज्ञान की ओर हो अनुशीलन,
आत्मबोध का कर सके विश्व मंचन,
आत्मज्ञान पर हो परिचर्चा, तो हो अच्छा....
कुशाग्रता का न हो कोई अभाव,
अज्ञानता हो जब निष्प्रभाव,
विवेकशीलता का दूरगामी प्रभाव,
संस्कार के जले हो प्रकाश, तो हो अच्छा....
वाद-परिवाद, चर्चा-परिचर्चा,
निष्कर्ष इन सबका हो कोई, तो हो अच्छा..
निष्कर्ष इन सबका हो कोई, तो हो अच्छा..
होते रहे परिवाद, घटते रहे विवाद,
मिटते रहे मन के सारे विषाद,
कुछ याद रखने लायक हो जो वाद,
स्वाद सबके जीवन में भरे, तो हो अच्छा...
निरर्थक ही हो जब बातों के मंथन,
निरर्थक हो जज्बातों के गूंथन,
फिर टूट जाते है मन के ये अवगुंठन,
जब अर्थ भरे जज्बातों में, तो हो अच्छा....
चर्चा हो मन के असह्य पीड़ा की,
वेदना में तपते से जीवन की,
विरह में जलते मन के आलिंगन की,
सावन में सूखे की हो चर्चा, तो हो अच्छा....
जो क्रियात्मकता का करे सृजन,
ज्ञान की ओर हो अनुशीलन,
आत्मबोध का कर सके विश्व मंचन,
आत्मज्ञान पर हो परिचर्चा, तो हो अच्छा....
कुशाग्रता का न हो कोई अभाव,
अज्ञानता हो जब निष्प्रभाव,
विवेकशीलता का दूरगामी प्रभाव,
संस्कार के जले हो प्रकाश, तो हो अच्छा....
वाद-परिवाद, चर्चा-परिचर्चा,
निष्कर्ष इन सबका हो कोई, तो हो अच्छा..