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Friday, 17 November 2017

युग का जुआ

जतन से युग का जुआ, बस थामकर होगा उठाना....

खींचकर प्रत्यंचा,
यूँ धीर कर,
साध लेना वो निशाना.....

गर सिर्फ गर....!

बिंब उस लक्ष्य की,
इन आँखों में रची बसी,
लगन की साध से,
गर ये प्रत्यंचा रही कसी,
धैर्य का दामन,
छोड़ा नहीं तुमने कभी,
निगाहें गर सदा,
उस निशाने पर रही सधी।

फिर है डर क्या?
व्यर्थ न जाएगा ये प्रयत्न.....
ऊँगलियो में हैं जो दम,
सध ही जाएगा निशाना.....
बस खींचकर प्रत्यंचा, बिंध देना है वो निशाना.....

है कांधे पे तेरे, युग का ये जुआ,
जतन से थामकर,
लगन से होगा उठाना....

बस सिर्फ बस.....!

मंजिलों पे रहे नजर,
उन रास्तों की हो तुझे खबर,
थक न जाए ये बदन,
न ऊबे कहीं ये मन,
दिल में हो इक संबल,
अकेला मैं ही नही,
सभी साथ रहे हैं चल,
हित में सभी के,
ये युग भी रहा है बदल।

फिर न चिंता कोई?
प्रयत्न कर, युग का ये चरण,
विजयी हो काट लेंगे हम,
खींच लेंगे दूर तक,
जतन से युग का जुआ, बस साथ है मिलकर उठाना....