Showing posts with label बरखा. Show all posts
Showing posts with label बरखा. Show all posts

Thursday, 10 May 2018

ओ बाबुल

ओ बाबुल! यूं भुला न देना, फिर पुकार लेना मुझे...

कोई नन्ही कली सी, मैं तो थी खिली,
तेरे ही आंगन तो मैं थी पली,
चहकती थी मै, तेरा स्नेह पाकर,
फुदकती थी मैं, तेरे ही गोद आकर,
वही ऐतबार, तु मेरा देना मुझे!

ओ बाबुल! यूं भुला न देना, फिर पुकार लेना मुझे...

स्नेहिल स्पर्श, तुने ही दिया था मुझे,
प्रथम पग तूने ही सिखाया मुझे,
अक्षर प्रथम तुझसे ही मैं थी पढी,
शीतल बयार सी मै तेरे ही आंगन बही,
स्नेह का फुहार, वही देना मुझे!

ओ बाबुल! यूं भुला न देना, फिर पुकार लेना मुझे...

बरखा बहार मैं, थी मेघा मल्हार मैं,
हर बार पाई तेरा दुलार मैं,
अब जाऊंगी कहाँ उस पार मैं,
न अलविदा तेरे मन से है होना मुझे,
विदाई का उपहार, यही देना मुझे!

ओ बाबुल! यूं भुला न देना, फिर पुकार लेना मुझे...

मैं हूं विश्रंभी, तू मेरा ऐतबार रखना,
विश्वास का मेरे है तू ही गहना,
भूलूंगी ना मैं, तुझे अन्तिम घड़ी तक,
मिलने को आऊंगी, मैं तेरी देहरी तक,
मोह का संसार, यही देना मुझे!

ओ बाबुल! यूं भुला न देना, फिर पुकार लेना मुझे...