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Wednesday, 13 July 2022

कभी यूं ही


यूं ही.....

कभी यूं ही, रुक जाती हैं पलकें,
दर्द कभी, यूं हल्के -हल्के,
उस ओर कभी, मुड़ जाते हैं सब रस्ते,
कभी इक वादा खुद से,
न गुजरेंगे, 
फिर, उन रस्तों से!

यूं ही.....

कभी यूं ही, दे जाए बहके लम्हें,
उलझे शब्दों के, अनकहे,
खोले, राज सभी, बहके जज्बातों के,
स्वप्निल, सारी रातों के,
नींद चुरा ले,
अपनाए, गैर कहाए!

यूं ही.....

कभी यूं ही, आ जाए ख्वाबों में,
बिसराए, उलझी राहों में,
दो लम्हा, वो ही यहां, ठहरा बाहों में,
ठहरे से, जाते लम्हों में,
आए यादों में,
तरसाए, हर बातों में!

यूं ही.....

कभी यूं ही, रुकते ये धार नहीं,
सपने, सब साकार नहीं,
बारिश की बादल का, आकार नहीं,
निर्मूल, ये आधार नहीं,
ये प्यार नहीं,
तू, क्यूं ढूंढ़े ठौर यहीं!

यूं ही.....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)