चल पड़ी, बादलों से, बिछड़ कर,
चल ना सकी, वो इक पल सम्भल कर,
बूँदें कई, गिरी थी बदन पर,
गम ही सुना कर गई, बारिश का पानी!
छुपी बादलों में, रुकी काजलों में,
सिसकती सी रही, भीगे से आँचलों में,
रही कैद, मन में उतर कर,
वो भिगोती रही नैन, बारिश का पानी!
रही गीत गाती, कोई वो रात भर,
विरह सुनाती गई, अपनी वो रात भर,
गम में डूबे, भीगे वे स्वर,
कोई दर्द दे कर गई, बारिश का पानी!
प्यास कैसी, रह गई है अंजानी!
झूमकर, झमा-झम, बरसा ये बादल,
तरसा है, फिर भी ये मन,
यूँ गुजरा है छूकर, बारिश का पानी!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
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