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Thursday, 24 March 2016

हिचकियों का दौर

क्युँ सरक रहा हूँ मैं! क्या बेवसी में याद किया उसने मुझे?

शायद हो सकता है........
रूह की मुक्त गहराईयों में बिठा लिया है उसने मुझे,
साँसों के प्रवाह के हर तार में उलझा लिया है उसने मुझे,
सुलगते हुए दिलों के अरमान में चाहा है उसने मुझे,

क्या बरबस फिर याद किया उसनेे? आई क्युँ फिर हिचकी!

या फिर शायद..........
दबी हुई सी अनंत चाह है संजीदगी में उनकी,
जलप्रपात सी बही रक्त प्रवाह है धमनियों में उनकी,
फिजाओं में फैलता हुआ गूंज है आवाज में उनकी।

फिर हुई हिचकी! क्या चल पड़ी हैं वो निगाहें इस ओर ?

शायद हो न हो.......
तल्लीनता से वो आँखे देखती नभ में मेरी ओर,
मशरूफियत में जिन्दगी की ध्यान उनका है मेरी ओर,
या हिज्र की बात चली और आ रहे वो मेरी ओर।

सरक रहा हूँ मैं, रूह में अब बस गया ये हिचकियों का दौर ।

Friday, 15 January 2016

मशरूफियत

आपकी मशरूफ़ियत देखकर,
बैठ इन्तजार में कुछ लिखने लगा,
मशरूफियत ताउम्र बढ़ती ही गई आपकी,
हद-ए-इन्तजार मैं करता रह गया,
मेरी कलम चलती ही रह गई।

इंतहा मशरूफियत की हुई,
उम्र सारी इंतजार मे ही कट गई,
हमने पूरी की पूरी किताब लिख डाली,
छायावादी कवि और लेखक बन गए हम,
शोहरत कदम चूमती चली गई।