Friday, 15 January 2016

मशरूफियत

आपकी मशरूफ़ियत देखकर,
बैठ इन्तजार में कुछ लिखने लगा,
मशरूफियत ताउम्र बढ़ती ही गई आपकी,
हद-ए-इन्तजार मैं करता रह गया,
मेरी कलम चलती ही रह गई।

इंतहा मशरूफियत की हुई,
उम्र सारी इंतजार मे ही कट गई,
हमने पूरी की पूरी किताब लिख डाली,
छायावादी कवि और लेखक बन गए हम,
शोहरत कदम चूमती चली गई।

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