क्युँ सरक रहा हूँ मैं! क्या बेवसी में याद किया उसने मुझे?
शायद हो सकता है........
रूह की मुक्त गहराईयों में बिठा लिया है उसने मुझे,
साँसों के प्रवाह के हर तार में उलझा लिया है उसने मुझे,
सुलगते हुए दिलों के अरमान में चाहा है उसने मुझे,
क्या बरबस फिर याद किया उसनेे? आई क्युँ फिर हिचकी!
या फिर शायद..........
दबी हुई सी अनंत चाह है संजीदगी में उनकी,
जलप्रपात सी बही रक्त प्रवाह है धमनियों में उनकी,
फिजाओं में फैलता हुआ गूंज है आवाज में उनकी।
फिर हुई हिचकी! क्या चल पड़ी हैं वो निगाहें इस ओर ?
शायद हो न हो.......
तल्लीनता से वो आँखे देखती नभ में मेरी ओर,
मशरूफियत में जिन्दगी की ध्यान उनका है मेरी ओर,
या हिज्र की बात चली और आ रहे वो मेरी ओर।
सरक रहा हूँ मैं, रूह में अब बस गया ये हिचकियों का दौर ।
शायद हो सकता है........
रूह की मुक्त गहराईयों में बिठा लिया है उसने मुझे,
साँसों के प्रवाह के हर तार में उलझा लिया है उसने मुझे,
सुलगते हुए दिलों के अरमान में चाहा है उसने मुझे,
क्या बरबस फिर याद किया उसनेे? आई क्युँ फिर हिचकी!
या फिर शायद..........
दबी हुई सी अनंत चाह है संजीदगी में उनकी,
जलप्रपात सी बही रक्त प्रवाह है धमनियों में उनकी,
फिजाओं में फैलता हुआ गूंज है आवाज में उनकी।
फिर हुई हिचकी! क्या चल पड़ी हैं वो निगाहें इस ओर ?
शायद हो न हो.......
तल्लीनता से वो आँखे देखती नभ में मेरी ओर,
मशरूफियत में जिन्दगी की ध्यान उनका है मेरी ओर,
या हिज्र की बात चली और आ रहे वो मेरी ओर।
सरक रहा हूँ मैं, रूह में अब बस गया ये हिचकियों का दौर ।
बहुत मार्मिक रचना। बहुत अच्छा लिखा पुरुषोत्तम जी।
ReplyDeleteधन्यवाद, मनीष जी
DeleteGood
ReplyDeleteThanks sir
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 11 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार व धन्यवाद आदरणीय
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब।
ReplyDeleteहार्दिक आभार व धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर रचना चिन्तन करने की ओर प्रेरित करती हुई
ReplyDeleteहार्दिक आभार व धन्यवाद आदरणीय
Deleteवाह ! बेहतरीन सृजन आदरणीय सर.
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार व धन्यवाद आदरणीय
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