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Tuesday 13 September 2016

नए स्वर

क्युॅकि उस नदी ने अब राह बदल ली है अपनी.....

वो दूर घाटी, जहाॅ कभी बहती थी इक नदी,
वो नदी की तलहटी, जहाॅ भीगते थे पत्थर के तन भी,
वो गुमशुम सी वादी, जहाॅ कोलाहल थे कभी,
सन्नाटा सा अब पसरा है हर तरफ वहीं,
असंख्य सूखे पत्थर के बीच सूखा है वो घाटी भी।

क्युॅकि उस नदी ने अब राह बदल ली है अपनी.....

घास के फूल उग आए हैं अब धीरे से वहीं,
पत्थर के तन पर निखरी है अनदेखी कोई कारीगरी,
प्रकृति ने बिछाई है मखमली सी चादर अपनी,
गूंजी है कूक कोयल की, हॅस रही हरियाली,
फूटे हैं आशा के स्वर, गाने लगी अब वो घाटी भी।

क्युॅकि उस नदी ने अब राह बदल ली है अपनी.....

Thursday 31 March 2016

ऐ मन तू चल कहीं

ऐ मन तू चल अब उस गाँव,
मनबसिया मोरा रहता जिस ठाँव!

निर्दयी सुधि लेता नहीं मेरी वो,
बस अपनी धुन में खोया रहता वो!

निस दिन तरपत ये काया गले,
ऐ मन तू चल अब बैरी से मिल ले!

विधि कुछ हो तो दीजो बताए,
हिय उस निष्ठुर के प्रेम दीजो जगाए!

क्या करना धन जब मन है सूना,
आ जाए वो वापस अब इस अंगना!

ऐ मन तू जा सुधि उनकी ले आ,
पूछ लेना उनसे उस मन में मैं हूँ क्या ?

साँवरे तुम बिसर गए क्युँ मुझको,
विह्वल नैन मेरे अब ढ़ूंढ़ रहे हैं तुझको!

ऐ मन तू ले चल कहीं उन राहों पर,
मनबसिया मेरा निकला था जिन राहों पर ।

Wednesday 16 March 2016

इंतजार की लगन

इंतजार मे पलकें बिछाए बैठी थी वो जो राह में!

मन की रत्नगर्भा में,
असंख्य कुसुम से खिलने लगे,
हृदय की इन वादियों में,
गीत वनप्रिया के बजने लगे,
विश्रुपगा, सूर्यसुता, चक्षुजल,
सब साथ साथ बहने लगे।

इंतजार मे पलकें बिछाए बैठी थी वो जो राह में!

चुभते थे शूल राहों में,
 अब फूलों जैसे लगने लगे,
प्रारब्थ, नियति, भाग्य,
 सब के राह प्रशस्त होने लगे,
राह करवाल के धार सी,
 रम्य परिजात से लगने लगे।

इंतजार मे पलकें बिछाए बैठी थी वो जो राह में!

Thursday 25 February 2016

तुुम मैं होती, मैं तुम होता

कभी सोचता हूँ!
मैं मैं न होता, तेरा आईना होता!
तो क्या क्या होता इस मन में?
क्या गुजरती तुझपर मुझपर जीवन में?

तुम देखती मुझमें अक्श अपना,
हर पल होती समीक्षा जीवन की मेरी,
तेरे आँसूँ बहते मेरी इन आँखों से,
तुम हँसती संग मैं भी हँस लेता,
रूप तेरा देखकर कुछ निखर मैं भी जाता,
मेरा साँवला रंग थोड़ा गोरा हो जाता।

कभी सोचता हूँ!
तुम तुम न होती, मेरी प्रतीक्षा होती!
तो क्या क्या घटता उस पल में?
क्या गुजरती तुझपर मुझपर जीवन में?

द्वार खड़ी तुम देखती राह मेरी,
मैं दूर खड़ा दैेखता मुस्काता,
इन्तजार भरे उन पलों की दास्ताँ,
तेरी बोली में सुनता जाता,
खुश करने को तुम्हें वापस जल्दी आता,
मैं पल पल इंतजार के तौलता।

कभी सोचता हूँ! तुुम मैं होती, मैं तुम होता....

एक बार जो तुम कह देती

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

प्रिये, तुम मेरी आस, तुम जन्मों की प्यास,
बुझाने जन्मों की प्यास, तेरी पनघट ही मैं आता,
राही तेरी राहों का मैं, और कहीं क्युँ जाता,
राह देखती तुम भी अगर, मैं भी तेरा हो जाता।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

तुमसे ही चलती ये सांसे, तुम पर ही विश्वास,
सासें जीवन की लेने, तेरी बगिया ही मैं आता,
टूटे हृदय का यह मृदंग, तेरे लिए बजाता,
गीत मेरे तुम भी सुन लेती, तो मैं तेरा हो जाता।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

कह देती तुम गर, बात कभी अपने मन की,
उम्मीद लिए यही मन में, मैं तेरी राह खड़ा था,
यूं दामन उम्मीद का, कहाँ कभी छोड़ा था,
यूँ ही चल पड़ा था मैं, तुमने भी कब रोका था।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

Wednesday 24 February 2016

मैं सीधी राह का राही

राह मुड़ती भी है कहीं, मुझको ये पता न था,
तंग राहों होकर ये दिल, आज तक गुजरा न था,
चाल कैसी चल रहे दोस्त, मुझको ये पता न था,
मैं सीधी राह का राही, ठोंकरों का मुझे गुमाँ न था।

एक साजिश पल रही थी, दोस्तो के दिल में कही,
दोस्त नायाब मिलते रहे, जो दुश्मनों से कम नही,
शह पे शह खाते रहे, दोस्तों की मेहरबानी से ही,
मैं सीधी राह का राही, पर दोस्तों पे अब यकीं नहीं।

टेढ़े मेढ़े इन रास्तों से, जिन्दगानी मेरी गुजरती रही,
दोस्तों से जख्म खाए, दुश्मनी किसी से की नहीं,
चाल मेरी एक सी, नफरत दिल में कभी पली नहीं,
मैं सीधी राह का राही, जीवन की मुल्यों पर मुझे यकीं।