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Thursday, 31 March 2016

ऐ मन तू चल कहीं

ऐ मन तू चल अब उस गाँव,
मनबसिया मोरा रहता जिस ठाँव!

निर्दयी सुधि लेता नहीं मेरी वो,
बस अपनी धुन में खोया रहता वो!

निस दिन तरपत ये काया गले,
ऐ मन तू चल अब बैरी से मिल ले!

विधि कुछ हो तो दीजो बताए,
हिय उस निष्ठुर के प्रेम दीजो जगाए!

क्या करना धन जब मन है सूना,
आ जाए वो वापस अब इस अंगना!

ऐ मन तू जा सुधि उनकी ले आ,
पूछ लेना उनसे उस मन में मैं हूँ क्या ?

साँवरे तुम बिसर गए क्युँ मुझको,
विह्वल नैन मेरे अब ढ़ूंढ़ रहे हैं तुझको!

ऐ मन तू ले चल कहीं उन राहों पर,
मनबसिया मेरा निकला था जिन राहों पर ।

Monday, 28 March 2016

सांझ प्रहर फिर से दुखदाई

सांझ प्रहर आज फिर से दुखदाई,
अस्ताचल की किरणें विरहाग्नि लेकर आई,

मन के आंगन तम सा घन छाया,
मिलनातुर मन, विरह की अग्नि मे काया,

नैन निर्झर सरिता से कलकल छलके,
सुर हृदय विलाप कीे घन तड़ित सा कड़के,

विरह की यह वेला युगों से जीवन में,
साँझ प्रहर अब लगते संगी से जीवन के,

वो निष्ठुर दूर कहीं पर सदा हृदय में,
निर्दयी वो दूर पर प्यारा मुझको जीवन में,

रात दिन ज्युँ कभी मिल नहीं पाते,
सांझ घङी किन्तु दोनो नित मिलने को आते,

अगन इस विरह की ऐसे ही संग मेरे,
सांझ ढ़ले नित आ जाते ये लगने गले मेरे।