जब ताकती हो, शून्य को, मेरी आँखें,
रुक सी गई हों, ये मेरी, चंचल सी पलकें,
ठहरा वहीं हो, बादल गगन पे,
तो, समझना, वो तुम हो,
और, याद तुझको, मैंने किया है!
विचलित हो जब, कभी मन तुम्हारा,
जब लेना पड़े, तुम्हें तन्हाईयों का सहारा,
लगे कोई बुलाए, हलके-हलके,
तो, समझना, वो मैं हूँ,
और, याद तुझको, मैंने किया है!
जो झुक जाएँ, उन पर्वतों पे घटाएँ,
कहीं रुक कर पवन, भरे सर्द सी आहें,
राहों में, बिखरे हों टूट कर पत्ते,
तो, समझना, वो मैं हूँ,
और, याद तुझको, मैंने किया है!
आँखें सजल हो, कटता न पल हो,
कोई अश्रु-धार बन, बहता अविरल हो,
पराया लगे जब, एहसास सारे,
तो, समझना, वो मैं हूँ,
और, याद तुझको, मैंने किया है!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
रुक सी गई हों, ये मेरी, चंचल सी पलकें,
ठहरा वहीं हो, बादल गगन पे,
तो, समझना, वो तुम हो,
और, याद तुझको, मैंने किया है!
विचलित हो जब, कभी मन तुम्हारा,
जब लेना पड़े, तुम्हें तन्हाईयों का सहारा,
लगे कोई बुलाए, हलके-हलके,
तो, समझना, वो मैं हूँ,
और, याद तुझको, मैंने किया है!
जो झुक जाएँ, उन पर्वतों पे घटाएँ,
कहीं रुक कर पवन, भरे सर्द सी आहें,
राहों में, बिखरे हों टूट कर पत्ते,
तो, समझना, वो मैं हूँ,
और, याद तुझको, मैंने किया है!
आँखें सजल हो, कटता न पल हो,
कोई अश्रु-धार बन, बहता अविरल हो,
पराया लगे जब, एहसास सारे,
तो, समझना, वो मैं हूँ,
और, याद तुझको, मैंने किया है!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)